कन्नड़ फिल्म जगत एक ऐसे समाचार से हिल गया है, जिसने पूरे उद्योग को सोचने पर मजबूर कर दिया है। प्रसिद्ध निर्देशक गुरु प्रसाद, जो अपनी अनूठी फिल्म निर्माण शैली के लिए जाने जाते थे, अपनी ही कहानी का एक दुखद अंत बन गए। उनका शव बेंगलुरु के एक अपार्टमेंट में सड़ी हुई अवस्था में पाया गया, जहाँ वो अकेले रहते थे। 52 वर्षीय गुरु प्रसाद का जीवन हालांकि सफलता की कहानियों से भरा हुआ था, लेकिन वित्तीय संकट उनके लिए जानलेवा साबित हुआ।
गुरु प्रसाद की कहानियाँ हमेशा दिल को छू लेने वाली और समाज के अनछुए पहलुओं को दर्शाने वाली रही हैं। 'माता', 'एड्डेलु मंजुनाथा' और 'डायरेक्टर स्पेशल' जैसी फिल्मों ने न सिर्फ कन्नड़ दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई बल्कि आलोचकों के भी खूब सराहे गए। उन्होंने अपने विषय और संवादिकी को हमेशा एक स्पष्ट और साहसिक दृष्टिकोण से पेश किया। उनकी फिल्मों ने सामाजिक मुद्दों पर चर्चा कराने में खास भूमिका निभाई।
उनकी अंतिम फिल्म, 'रंगनायक', जो मार्च 2024 में रिलीज हुई थी, अभिनेता जग्गेश के साथ फिल्माई गई थी। हालांकि फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षित सफलता हासिल नहीं की, जिसने गुरु प्रसाद को गहरे वित्तीय संकट में डाल दिया। यह संकट इतना गहरा हो गया कि उसका अंत ऐसी दुखद घटना में हुआ।
पिछले साल चेक बाउंस के एक मामले में उनकी गिरफ्तारी हुई थी, जिसने उनकी पेशेवर और निजी जिंदगी को हिला दिया। इसके बाद से उन्होंने अकेले रहना शुरू कर दिया। जिस समय वे अकेले रह रहे थे, उनके तनाव और मानसिक स्वास्थ्य में कमी को लेकर उनके करीबी भी चिंतित थे। उनकी पत्नी और दो बेटियाँ हैं, जिनके लिए यह क्षति अपूरणीय है।
हालांकि, पुलिस को संदेह है कि यह आत्महत्या का मामला है, लेकिन उनकी मौत के पीछे कई परिस्थितिजन्य दवाब भी थे। गलियारे से उठने वाली बदबू के कारण जब पड़ोसियों ने पुलिस को खबर दी, तो पुलिस ने उन्हें उनके फ्लैट में पंखे से लटका पाया।
गुरु प्रसाद की इस तरह की मृत्यु ने कन्नड़ फिल्म उद्योग में मानसिक स्वास्थ्य और कलाकारों पर वित्तीय दवाब के बारे में जागरूकता बढ़ाई है। उनकी मौत से इंडस्ट्री में यह चर्चा शुरू हो गई है कि सफल होते हुए भी कलाकार कैसे मानसिक चुनौतियों से जूझते हैं। वे कितनी ही प्रदान की गई मान्यता के बावजूद संघर्ष कर रहे होते हैं।
यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि फिल्म उद्योग में काम कर रहे लोग किस प्रकार से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं और उन्हें कैसे उचित समर्थन मिल सकता है। कन्नड़ सिनेमा ने निसंदेह एक प्रतिभाशाली और संवेदनशील निर्देशक खो दिया है, जिसकी कमी हमेशा खलेगी।
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