26 अक्तूबर, 2024
दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष पद पर ABVP के आर्यन मान की जीत तय हो गई है। यह नतीजा छात्र राजनीति के इस साल के सबसे चर्चा वाले मुकाबले का संकेत है। DUSU चुनाव 2025 इसलिए भी अहम हैं क्योंकि यहां के फैसलों का असर कैंपस के रोजमर्रा के मुद्दों—फीस, हॉस्टल, सुरक्षा, बस/मेट्रो रियायत, लाइब्रेरी टाइमिंग—पर सीधा पड़ता है।
कैंपस में मतगणना के बाद छात्र संगठनों ने अपना-अपना जश्न किया। कई कॉलेजों में ढोल-नगाड़े और पोस्टर-बैनर आम नजारा रहे। कड़ा मुकाबला रहने के बावजूद अध्यक्ष पद ABVP के खाते में गया, जिससे संगठन को DU में रणनीतिक बढ़त मिली है। यह जीत उन्हें आने वाले शैक्षणिक सत्र में छात्र मुद्दों पर एजेंडा सेट करने का मौका देती है।
DUSU का इतिहास बताता है कि यहां से उभरे नाम बाद में राष्ट्रीय राजनीति तक पहुंचे—अरुण जेटली, अजय माकन, अल्का लांबा जैसे उदाहरण अक्सर दिए जाते हैं। इसी वजह से DU के नतीजे सियासी दलों और युवा संगठनों के लिए सिग्नल की तरह देखे जाते हैं।
अब आगे क्या? नए छात्रसंघ के सामने कुछ तात्कालिक काम होंगे—कैंपस सुरक्षा और परिवहन पर DU प्रशासन से तालमेल, छात्रावासों की सीटें और फीस ढांचा, परीक्षा-शैक्षणिक कैलेंडर की स्पष्टता, और कॉलेजों में छात्र सुविधाओं का ऑडिट। यह भी देखा जाएगा कि अलग-अलग कॉलेज यूनियनों के साथ समन्वय करके बड़े मुद्दों पर संयुक्त मांगें कैसे आगे बढ़ती हैं।
सोशल मीडिया पर यह दावा घूम रहा है कि आर्यन मान का ancestral कनेक्शन बहादुरगढ़ (हरियाणा) से है और वहां उनके पैतृक गांव में जश्न हुआ। हमारे पास उपलब्ध रिपोर्टों और खोज में ऐसी कोई पुख्ता, स्वतंत्र पुष्टि नहीं मिली। किसी विश्वसनीय स्रोत—जैसे जिला प्रशासन, स्थानीय पुलिस/जनसंपर्क, ग्राम पंचायत रिकॉर्ड या उम्मीदवार के आधिकारिक बायो—से यह जानकारी फिलहाल सत्यापित नहीं है।
यानी खबर का पहला हिस्सा—आर्यन मान की विजय—स्पष्ट है। दूसरा हिस्सा—बहादुरगढ़ में जश्न या पैतृक गांव का विवरण—अभी पुष्टि-रहित है। अगर आप भी यह दावा देख रहे हैं, तो इसे सच मानने से पहले दो-तीन क्रॉस-चेक जरूरी हैं।
सोशल मीडिया पर स्थानीय पहचान को लेकर दावे अक्सर तेजी से फैलते हैं, पर कई बार वे अधूरे होते हैं। वजह साफ है—विजय की खबर के साथ समुदाय-स्तरीय गौरव की कहानी बनाना आसान होता है। लेकिन आधिकारिक रिकॉर्ड, भरोसेमंद लोकल रिपोर्ट और उम्मीदवार की खुद की सार्वजनिक जानकारी के बिना इसे खबर की तरह पेश करना जल्दबाजी होगी।
राजनीतिक असर की बात करें तो अगर बहादुरगढ़ कनेक्शन की पुष्टि होती है, तो हरियाणा के छात्र संगठनों और स्थानीय युवाओं में इसका प्रतीकात्मक अर्थ निकलेगा—DU में प्रतिनिधित्व, नेटवर्किंग और इंटर्नशिप-सोसायटी स्पेस में दृश्यता। अगर नहीं, तो भी असल फोकस वही रहेगा—DU कैंपस में छात्र-हित के फैसले और नए छात्रसंघ की डिलीवरी।
फिलहाल नज़र अगली चालों पर है—नए कार्यकारी दल का गठन, विभागीय समितियों में छात्र भागीदारी, और प्रशासन के साथ शुरुआती मीटिंगों का एजेंडा। यही तय करेगा कि यह जनादेश जश्न से आगे जाकर कैंपस में ठोस बदलाव में कैसे बदलेगा।