हरियाणा के 2024 विधानसभा चुनाव परिणाम कई लोगों को चौंका गया। जन्नायक जनता पार्टी (JJP) की सत्ता‑संधि‑बाजी से लेकर अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई। पूर्व उपमुख्य मंत्री धूष्यंत चौधरी, जो 2019 में उद्याना कलां से 92,504 वोटों के साथ जीत हासिल कर चुके थे, इस बार केवल 7,950 वोटों पर पाँचवें स्थान पर आए और अपनी सुरक्षा जमा भी खो दी। उनका वोट‑शेयर 91 % गिर गया, जिससे उनका व्यक्तिगत पतन ही नहीं बल्कि पार्टी का पतन स्पष्ट हो गया।
उसी चुनाव में भाजपा के देवेंदर चटार भुज अत्रि ने 48,968 वोटों से जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस के ब्रजेंद्र सिंह को केवल 32 वोटों के अंतर से हारना पड़ा। स्वतंत्र उम्मीदवार विरेन्द्र घोघरियन (31,456 वोट) और विकास (13,458 वोट) ने भी धूष्यंत से बेहतर प्रदर्शन किया, जो इस बात को दर्शाता है कि मतदाता कितनी तेज़ी से पार्टी से दूर हो गए।
JJP की पूरी सवारी ही बिखर गई। 2019 में 10 सीटें जीत कर सरकार में दो‑तीन राजनैतिक इंट्रीज लेकर अति‑महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दल ने इस बार 90 में से कोई भी सीट नहीं जीती। प्री‑पोल गठबंधन के तहत जन्नायक जनता पार्टी ने एज़ाद समाज पार्टी (ASP‑कांशी राम) के साथ सभी 90 सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा की थी, पर अन्त में JJP ने 66 और ASP ने 12 सीटें ही contested कीं।
पार्टी के भीतर कई कारण इस विफलता के लिये जिम्मेदार बताये जा रहे हैं। सबसे प्रमुख कारण था 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ सीट‑सांझा‑के‑लिए हुई टकराव, जिससे गठबंधन टूट गया। साथ ही, कई क्षेत्रों में JJP की मोर्चा‑तोड़ रणनीति कमजोर पड़ी, जबकि विरोधी पार्टियों ने सुधरे हुए अभियान और स्थानीय मुद्दों पर लक्षित संदेश जारी किए।
धूष्यंत चौधरी के 36 साल की उम्र में इतनी तेज़ गिरावट देखना कई बार असामान्य माना जाता है। 2019 में उन्होंने भाजपा के प्रमुख नेता बिरेन्द्र सिंह की पत्नी प्रीम लता को हराकर अपनी ताकत साबित की थी। लेकिन अब वह 4 % के वोट‑शेयर के साथ अपने ही जमाने की यादें बेच रहे हैं। उनका यह पतन सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि बहु‑पारिवारिक दल – चौधरी परिवार की राजनीतिक शक्ति में भी दरार का संकेत देता है।
भाजपा ने इस चुनाव में कई अनुमानित प्रतिकूलताओं को मात देकर 90 में से 49 सीटें जीतीं। यह नतीजा दर्शाता है कि राज्य में अभी भी भाजपा का मजबूत आधार है, जबकि जिंदादिल विरोधी दलों को पुनर्संरचना की जरूरत है। कांग्रेस ने भी अपेक्षित रूप से ज्यादा नहीं किया, लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह दर्शा कि दो‑ध्रुवीय प्रतिस्पर्धा अब भी जीवित है।
जैसा कि विशेषज्ञों ने कहा, JJP के भविष्य का मार्ग अब कई मोड़ पर है। यदि वह अपना आधार पुनः स्थापित नहीं कर पाती, तो दल के सदस्यों को नई गठबंधन की तलाश या अलग‑अलग सीटों पर स्वतंत्र रूप से लड़ना पड़ सकता है। वहीं धूष्यंत को भी अपने राजनैतिक रणनीति, सार्वजनिक संवाद और युवा voter base के साथ पुनः जुड़ने की जरूरत है।
संपूर्ण रूप से देखा जाए तो 2024 की हरियाणा विधानसभा चुनावों ने भारतीय राजनीति में तेज़ी से बदलते मतदाता रवैये को उजागर किया। यह एक चेतावनी है कि किसे भी सत्ता की नींव को स्थिर मान कर नहीं चलना चाहिए; जनता का नजरिया हमेशा बदलता रहता है, और उसे समझना ही जीत की कुंजी है।