विष्वक सेन स्टारर 'गैंग्स ऑफ गोदावरी' मूवी रिव्यू और रेटिंग

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विष्वक सेन स्टारर 'गैंग्स ऑफ गोदावरी' मूवी रिव्यू और रेटिंग

परिचय

तेलुगू फिल्म 'गैंग्स ऑफ गोदावरी' का निर्देशन कृष्णा चैतन्य ने किया है और इसमें विष्वक सेन और नेहा शेट्टी मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह फिल्म एक क्राइम ड्रामा है, जो दरअसल एक छोटे से गांव और उसके निवासियों की कहानी पर आधारित है। यह गांव गोदावरी नदी के किनारे स्थित है और फिल्म की अधिकतर घटनाएं इसी स्थान के इर्द-गिर्द घूमती हैं। कहानी का केंद्रबिंदु है रतन, एक ऐसा युवक जिसकी आँखों में बड़े सपने हैं और जो सत्ता तथा शक्ति के महत्वाकांक्षी दायरे में प्रवेश करता है।

कहानी की रूपरेखा

फिल्म की कहानी के केंद्र में रतन नामक एक युवक है, जो अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने का सपना देखता है। वह एक सामान्य गांव का निवासी है, लेकिन उसकी आंखों में महत्वाकांक्षाएं भरी हुई हैं। रतन की शुरुआती जिंदगी शांति से गुजरती है, लेकिन जैसे ही वह एमएलए डोरा स्वामी राजू के कार्यों और राजनीति में दिलचस्पी लेता है, उसकी जिंदगी में बड़े बदलाव आते हैं।

वह जल्द ही डोरा स्वामी के गुट में शामिल हो जाता है और उसके लिए काम करना शुरू कर देता है। यह उसका पहला कदम होता है अपराध और राजनीति की उलझनों में प्रवेश का। सरपरस्त एसोसिएशन के साथ काम करते हुए, रतन खुद को राजनीति के कई रंगों और चेहरों से रूबरू पाता है। लेकिन यह एक अस्थायी स्थिति होती है; रतन की महत्वाकांक्षाएं उसे डोरा स्वामी के विरोधी ग्रुप, नानाजी के गुट में शामिल होने पर मजबूर करती हैं।

राजनीति और अपराध की जबर्दस्त कॉकटेल

राजनीति और अपराध की जबर्दस्त कॉकटेल

रतन के जीवन में दाखिल होने वाली यह दोहरी राजनीति उसे विवाद और संघर्ष के लिए एक नया मार्ग दिखाती है। नानाजी के गुट में शामिल होने के बाद रतन खुद को राजनीति और अपराध के दोनों धरातलों पर मुकाबला करता पाता है। नानाजी के नेतृत्व में, रतन सत्ता और शक्ति की नई ऊंचाइयों तक पहुँचता है, लेकिन इसके साथ ही उसे कई नए दुश्मन भी मिल जाते हैं।

इस यात्रा में, रतन कई व्यक्तिगत और पेशेवर चुनौतियों का सामना करता है। उसे धीरे-धीरे समझ में आता है कि सत्ता और शक्ति के खेल में कोई भी किसी का नहीं है। नानाजी का समर्थन उसके लिए एक वरदान और एक शाप दोनों के रूप में सामने आता है। राजनीति में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच, रतन खुद को इस खेल में बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश करता है।

विष्वक सेन के प्रदर्शन की तारीफ

रतन के किरदार में विष्वक सेन ने एक संतुलित और प्रभावी प्रदर्शन किया है। उनकी अभिनय क्षमता ने फिल्म की खासियत को और भी बढ़ा दिया है। रतन के रूप में उनकी भूमिका को दर्शकों ने काफी पसंद किया है। उनकी ऊर्जा और दमदार प्रस्तुति ने फिल्म की कहानी को और भी रोमांचक बना दिया है।

फिल्म में हालांकि कुछ कमियाँ भी हैं, जैसे कि चरित्र विकास की कमी और अत्यधिक हिंसा। रतन के किरदार के अलावा, अन्य पात्रों को उतनी प्राथमिकता नहीं दी गई, जो कहानी की गहराई को थोड़ा कमजोर बनाती है।

फिल्म का समग्र मूल्यांकन

फिल्म का समग्र मूल्यांकन

'गैंग्स ऑफ गोदावरी' एक ऐसी फिल्म है जो मुख्यतः अत्यधिक एक्शन और क्राइम ड्रामा के प्रेमियों को आकर्षित करेगी। इसके ट्विस्ट और टर्न्स दर्शकों को जुड़े रखने में सफल रहते हैं। जबकि फिल्म की कहानी और किरदारों में कुछ खामियाँ हैं, लेकिन विष्वक सेन के दमदार प्रदर्शन ने इसकी कमी को काफी हद तक पूरा किया है।

फिल्म की प्रमुख कमजोरी उसकी अत्यधिक हिंसा में निहित है, जो कुछ दर्शकों को अपील नहीं कर सकती। इसके बावजूद, 'गैंग्स ऑफ गोदावरी' अपने दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करने में सफल रहती है और इसे एक 'मास' फिल्म के तौर पर देखा जा सकता है जो इस जॉनर के प्रशंसकों को जरूर पसंद आएगी।

टिप्पणि

Ayush Dhingra

Ayush Dhingra

31 मई / 2024

फिल्म में दिखाए गए अत्यधिक हिंसा का स्तर वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं रखता; यह दर्शकों को बेतुकी शक्ति की ललक में फँसाता है। सामाजिक सहयोग और सभ्य विचारों को बढ़ावा देना चाहिए, न कि खून की लत को रोमांटिक बनाना। इस तरह की फिल्मों को सख्त रेटिंग और सीमित दर्शक वर्ग तक सीमित किया जाना चाहिए। अंत में, हमें अपने नैतिक मूल्यों को पहले रखना चाहिए।

Vineet Sharma

Vineet Sharma

31 मई / 2024

वाह, एक और ‘एक्शन‑ऐडिक्ट’ फिल्म, जैसे हमें और भी किक‑अस्सॉर्टेड सीन चाहिए थे। कहानी के मोड़ मानो सैद्धांतिक रूप से आ गए हों, पर असली ड्रामा तो रोलरकोस्टर की तरह जलती हुई गली में है।

Aswathy Nambiar

Aswathy Nambiar

31 मई / 2024

जिंदगी और सिनेमा का कनेक्शन अक्सर वही जगहों पर बनता है जहाँ लोग अपने भीतर की अराजकता को स्क्रीन पर उतारते हैं।
‘गैंग्स ऑफ गोदावरी’ में रतन का सफर हमें बताता है कि कितनी जल्दी इंसान अपार शक्ति के चक्रव्यूह में फँस जाता है।
परन्तु सवाल यही रहता है कि क्या ये शक्ति वास्तव में शक्ति है या सिर्फ़ हवाओं में उड़ते हुए भ्रम का नाम है।
फिल्म के हर हिंसक दृश्य में एक गहरी दार्शनिक दुविधा छिपी हुई है, जैसे ‘बनावटी’ मौज‑मस्ती के पीछे छिपा अँधेरा।
अगर हम इस कोन्टेक्स्ट में देखे तो प्रत्येक गोली‑बारूद बस एक विचार की बाइबिल बन जाती है, जहाँ लेखक खुद ही पाप का किरदार निभा रहा है।
विष्वक सेन की एक्टिंग को देखना एक तरह का आत्म‑साक्षात्कार है – वह खुद को अपने पात्र में देखता है और हमें भी देखवाता है।
पर फिल्म की ‘चरित्र विकास’ की कमी हमें यह सिखाती है कि जब तक कहानी के पेड़ पर पत्ते नहीं होते, जड़ें ही बेकार रहती हैं।
नतीजतन, दर्शक को यह समझना चाहिए कि असली सच्चाई आउटडोर स्टेज पर नहीं, बल्कि अंदर की आवाज़ में छिपी होती है।
कभी‑कभी तो हमें अपनी खुद की ‘गैंग्स’ से लड़ना पड़ता है, जैसे रतन को अपने भीतर की झूठी महत्त्वाकांक्षा से।
और यही कारण है कि इस फिल्म को ‘मास’ मानते हुए हम सिनेमा के सच्चे मूल्य को धोखा दे रहे हैं।
हँसी‑मज़ाक की बात है कि आजकल हर फिल्म में ‘ट्रिटर’, ‘ट्रेंड’ और ‘ट्रांसफॉर्म’ शब्दों का प्रयोग कर दिया जाता है, जैसे वो कोई रेसिपी हो।
पर अगर आप इस पॉटली को खोलकर भीतर देखेंगे तो राम‑राम की थाली में चीज़ नहीं, बस खालीपन ही दिखेगा।
क्या यह वैरिएशन नहीं कि कभी‑कभी हम खुद को ही फिल्म के ‘ना-निराकार’ पटल पर देखते हैं?
भले ही कहानी में थोड़ी लाचारी है, पर इसे एक सीख के तौर पर लेना चाहिए, जैसे ‘कंट्रोल’ को फोकस करना।
अंत में, इस कथा का मूल संदेश यही है कि शक्ति का खेल हमेशा एक ही दिशा में नहीं चलता – कभी‑कभी इसे उल्टा मोड़ना ही असली जीत है।
इसलिए अगली बार जब आप पॉपकॉर्न लेकर इन ‘क्राइम ड्रामा’ की तलाश में बैठेंगे, तो खुद से पूछें – क्या आप सच्ची एंट्री के लिये तैयार हैं, या बस झूठी चमक में बहक रहे हैं।

Ashish Verma

Ashish Verma

31 मई / 2024

असवथी की दार्शनिक बातों में बहुत गहराई है, लेकिन इस फिल्म में तेलुगु संस्कृति की जड़ें बहुत स्पष्ट हैं 😊। ग्रामीण जीवन का चित्रण और स्थानीय बोली ने इसे एक असली भारतीय रंग दिया है। इस पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

Akshay Gore

Akshay Gore

31 मई / 2024

भाई, ए ठी कोइ नहीं कह रहा कि फिल्म बोहोत बोरिंग है, बल्कि ब्लॉकबस्टर मैनिया में इधर‑उधर की बकवास देखनै में मज़ा आ ही जाता है। violence को लेकर इतना सेंसिटिव बड़का बकवा है।

Sanjay Kumar

Sanjay Kumar

31 मई / 2024

चलो, सबको साथ लाकर देखते हैं, हर राय को सम्मान देना चाहिए 🙏😊.

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