रतन टाटा, जिन्हें टाटा समूह का चेयरमैन एमेरिटस का टाइटल मिला है, ने अपनी वसीयत में अपने परिवार के सदस्यों और अपने पालतू जानवरों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की हैं। हाल ही में यह खबर आई है कि रतन टाटा ने अपनी वसीयत में अपने पालतू कुत्ते, जिसका नाम टीटो है, के लिए 10,000 करोड़ रुपये की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा छोड़ा है। यह निर्णय न केवल उनके द्वारा अपने पालतू जानवरों के प्रति प्यार और देखभाल को दर्शाता है, बल्कि उनके विचारशीलता और दयालुता की भी प्रतिबिंब है।
वसीयत के माध्यम से रतन टाटा ने न केवल अपने पालतू जानवरों के ज़रूरतों का ध्यान रखा है, बल्कि उन्होंने अपने शिष्य शंतनु नायडू की शिक्षा ऋण को भी माफ कर दिया है। शंतनु, जो अब टाटा चेयरमैन आफ़िस में जनरल मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं, ने कुछ वर्षों पहले उच्च शिक्षा के लिए ऋण लिया था। उनके ऋण की माफी, रतन टाटा की उस उदारता का उदाहरण है जो वे सदैव से दिखाते आए हैं।
रतन टाटा के इन फैसलों से स्पष्ट होता है कि वो न केवल व्यवसाय के क्षेत्र में सफल हैं, बल्कि वो अपनी उदारता और मानवता के लिए भी प्रशंसा के पात्र हैं। रतन टाटा ने हमेशा से समाज में सार्थक बदलाव लाने की इच्छा दिखाई है। उनके दान और चेरिटेबल कार्यों ने शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण, शहरी मामलों, ग्रामीण विकास और अवसरों के सृजन में अहम भूमिका निभाई है।
ऐसा कहा जा रहा है कि रतन टाटा की वसीयत में कई सामाजिक संस्थाओं और पहल के लिए प्रावधान किए गए हैं। वे अपने पूरे करियर में अपने परोपकारी प्रयासों के लिए जाने जाते रहे हैं। उन्होंने उन संस्थाओं को भी शक्तिशाली बनाया है जो समाज के विभिन्न वर्गों के कल्याण के लिए काम करती हैं।
रतन टाटा की वसीयत की पूरी जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन जितनी जानकारी मिली है वो यह बताने के लिए काफी है कि उनके करीबी सहयोगी और पालतू जानवरों का ख़ासा ख्याल रखा जाएगा। उनके फैसले से उनके शिष्य शंतनु नायडू और उनके पालतू टीटो को विशेष रूप से लाभ होगा। यह बात उनके व्यापक महाकवि की तरह सोचने का प्रतीक है।
गौरतलब है कि रतन टाटा एक ऐसे उद्योगपति हैं जो सरलता और विनम्रता से कार्य करते रहे हैं, और उनका सामाजिक योगदान असाधारण है। उनकी वसीयत इस बात की पुष्टि करती है कि उन्होंने न केवल अपने व्यापारिक कौशल और नेतृत्व से लोगों को प्रेरित किया है, बल्कि अपने उदार हृदय से भी दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाया है। इससे न केवल उनके परिवार बल्कि उनके आसपास के लोगों के लिए भी प्रेरणा मिलती है।
जब हम उनके जीवन के बारे में सोचते हैं, तब इस निर्णय के माध्यम से वे हमें यह सिखाते हैं कि सफलता का मतलब केवल आर्थिक समृद्धि नहीं है, बल्कि वह समाज के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियों को निभाने में भी निहित है। रतन टाटा इस दिशा में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, और यह दिखाता है कि एक सच्चा नेता कैसे बदलाब ला सकता है।
sona saoirse
26 अक्तूबर / 2024रतन टाटा का ये कदम एक बेजाज़ दिखावा है, जो सिर्फ अपने पालतू की दिखावा को बढ़ावा देने के लिये है।
पहले भी उनसे कई चैरिटी वादे हुए थे, लेकिन अब कुत्ते को 10,000 करोड़ का हिस्सा देना असहनीय है।
समाज को शिक्षित करना है तो असली जरूरतमंदों को देखें, न कि टाटा के पालतू को।
ऋण माफ़ करने का बहाना भी सिर्फ शिष्यों को फुर्तीला रखने के लिये है, वैध नहीं।
ऐसे बड़े उदारतावादी लोग अक्सर अपनी छवि बचाने के लिये ऐसे दिखावटी कदम उठाते हैं।
भारत में असली गरीबी का स्तर अभी भी बहुत ऊँचा है और हम ऐसी बातों पर चर्चा कर रहे हैं।
अगर टाटा साहब सच्चे दिल से मदद चाहते तो पीड़ित ग्रामीणों को सीधे पैसा दें।
ये सब अतिरेक है और असली नैतिकता से दूर।
एक बार फिर देखा गया कि एलीट वर्ग अपने निजी दिखावे के लिये सामाजिक मुद्दों का उपयोग करता है।
नाइजी कुत्ते का नाम टीटो सुनकर ही लग गया कि यह सब किस्म का तमाशा है।
वास्तव में इस तरह की वसीयत से समाज में अभिमान और असंतोष दोनों ही बढ़ते हैं।
सबको पता होना चाहिए कि असली धन सच्ची सहानुभूति में है, न कि कागज़ी वादों में।
टाटा की ये बात भले ही उनका इरादा अच्छा हो, लेकिन परिणाम में बहुत सवाल उठते हैं।
दूसरों को प्रेरित करने की बजाए यह केवल एक म्यूजिकल एक्ट जैसा लगता है।
हमें ऐसे उद्यमियों की ज़रूरत है जो वास्तविक रूप से लोगों के जीवन में बदलाव लाएँ।
टाटा की यह वसीयत केवल एक शो के लिए बनाई गई लगती है।
सारांश में, यह कदम गंभीर प्रश्न उठाता है और हमें इस तरह के दिखावे पर ध्यान नहीं देना चाहिए।