देव दीपावली 2025: वाराणसी के घाटों पर 5 नवंबर को एक लाख दीयों की ज्योति से जगमगाएगी गंगा

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देव दीपावली 2025: वाराणसी के घाटों पर 5 नवंबर को एक लाख दीयों की ज्योति से जगमगाएगी गंगा

वाराणसी के घाटों पर एक लाख दीयों की ज्योति फैलते ही गंगा नदी आकाश की तरह चमक उठेगी — ये नजारा सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि तीन हजार साल पुरानी आध्यात्मिक परंपरा का जीवंत अभिव्यक्ति है। देव दीपावली 2025 बुधवार, 5 नवंबर को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मनाई जाएगी, जब गंगा के किनारे देवताओं की अवतारणा का अनुभव होगा। इस विशेष पूर्णिमा का मुहूर्त शाम 5:15 बजे से 7:50 बजे तक रहेगा, जिसे द्रिक पंचांग और काशी ऑफिशियल वेब पोर्टल द्वारा आधिकारिक रूप से पुष्टि किया गया है। इस दिन का तात्पर्य केवल दीयों की रोशनी नहीं, बल्कि अंदरूनी अंधेरे — अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या — को दूर करने का है।

देव दीपावली का आध्यात्मिक मूल: शिव की विजय और देवताओं का अवतरण

इस उत्सव की जड़ें हिंदू पौराणिक कथाओं में छिपी हैं। जब त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों पर अत्याचार शुरू कर दिया, तो भगवान शिव ने त्रिपुरोत्सव के रूप में उसका वध किया। इस विजय के बाद, देवता अपनी शुद्धि के लिए गंगा में स्नान करने आए। इसीलिए इस दिन को 'देव दीपावली' कहा जाता है — देवताओं की दीपावली। स्वामी मुकुंदानंद, जिनके उपदेश राधा कृष्ण मंदिर के ब्लॉग पर प्रकाशित होते हैं, कहते हैं: 'असली दीपावली दिल की रोशनी है — ज्ञान और भक्ति से अंधेरा दूर होता है।' ये बात सिर्फ धार्मिक व्याख्या नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में आत्म-शुद्धि का मार्गदर्शन भी है।

एक लाख दीये, एक अद्भुत दृश्य: घाटों का जादू

सुबह के समय भक्त गंगा में स्नान करते हैं, फिर दान-पुण्य का कार्य करते हैं। लेकिन वाकई का जादू शाम को शुरू होता है। दशाश्वमेध घाट पर बड़ी संख्या में पुजारी एक साथ गंगा आरती करते हैं, जबकि आसपास के घाटों पर लगभग एक लाख मिट्टी के दीये जलते हैं। ये दीये न केवल घाटों को रोशन करते हैं, बल्कि नदी के पानी में उनकी प्रतिबिंबित ज्योति ऐसा नाच बनाती है जैसे आकाश के तारे नदी पर उतर आए हों। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे 'लंबे समय से चली आ रही परंपरा का एक सुव्यवस्थित अनुष्ठान' बताया है। इस दृश्य को देखने के लिए नदी पर नावों की लंबी लाइनें लग जाती हैं — कुछ लोग बस देखने आते हैं, कुछ भक्ति से गीत गाते हैं।

गंगा महोत्सव का अंग: सांस्कृतिक और प्रशासनिक तैयारियां

देव दीपावली केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गंगा महोत्सव का एक प्रमुख अंग है। उत्तर प्रदेश सरकार और वाराणसी नगर निगम इस उत्सव के लिए पहले से ही तैयारी में जुटे हुए हैं। घाटों की सजावट, सुरक्षा व्यवस्था, बिजली और दीयों की आपूर्ति, और स्वच्छता के लिए दसियों हजार स्वयंसेवक लगे हुए हैं। इस बार शाम के समय नदी पर रंगीन पटाखे भी फूटेंगे — जिनके प्रतिबिंब गंगा के पानी में जादू बन जाते हैं। साथ ही, शास्त्रीय संगीत, कथक नृत्य और सांस्कृतिक प्रदर्शन भी आयोजित किए जाएंगे।

वाराणसी की आबादी दोगुनी: पर्यटकों का भीड़-भाड़

पिछले वर्षों में इस उत्सव के दौरान वाराणसी में 5 लाख से अधिक आगंतुक आते हैं। होटलों की भर्ती दर 95% तक पहुंच जाती है। नदी पर चलने वाली नावें अब अतिरिक्त सेवाएं देती हैं — जिनके लिए भीड़ लगती है। यहां तक कि छोटे व्यापारी भी दीयों, फूलों, और भोजन की बेचने के लिए अपने दुकानें बढ़ा देते हैं। इस उत्सव ने सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक जीवन को भी जीवंत कर दिया है।

ऐतिहासिक जड़ें: 7वीं शताब्दी से चली आ रही परंपरा

चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में वाराणसी का दौरा किया था और उसने गंगा के घाटों पर दीयों की ज्योति का वर्णन किया था। ये दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि यह परंपरा कम से कम 12वीं शताब्दी तक पहुंच चुकी थी। आज भी यही दीये, यही आरती, यही नदी — बदला कुछ नहीं। बस आज इसे फोटोग्राफी, सोशल मीडिया और टूरिस्ट बसें नए आयाम दे रही हैं। परंपरा जीवित है — क्योंकि इसमें लोगों का दिल लगा है।

अगले कदम: भविष्य के लिए संरक्षण की चुनौती

लेकिन यह ज्योति बरकरार रहे, इसके लिए चुनौतियां भी हैं। एक लाख मिट्टी के दीये का अपशिष्ट पानी में डालने से नदी की सफाई प्रभावित हो सकती है। कुछ पर्यावरणविद् अब बायोडिग्रेडेबल दीयों और एलईडी बत्तियों का प्रस्ताव रख रहे हैं। वाराणसी नगर निगम इस पर विचार कर रहा है। यदि यह रूपांतरण सफल होता है, तो यह उत्सव न केवल आध्यात्मिक बल्कि पर्यावरणीय जागरूकता का भी प्रतीक बन सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

देव दीपावली का प्राशोध काल मुहूर्त क्यों महत्वपूर्ण है?

प्राशोध काल, जो शाम 5:15 बजे से 7:50 बजे तक रहता है, तांत्रिक और ज्योतिषीय रूप से देवताओं और मनुष्यों के बीच संपर्क का सबसे शक्तिशाली समय माना जाता है। इस अवधि में दीये जलाना, आरती करना और गंगा में स्नान करना विशेष फलदायी माना जाता है। यह समय दिन के अंत और रात के आरंभ के बीच का अंतराल है — जहां भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया का संगम होता है।

वाराणसी में इस उत्सव के लिए कितने लोग आते हैं?

पिछले वर्षों के आंकड़ों के अनुसार, देव दीपावली के दौरान वाराणसी में 5 लाख से अधिक आगंतुक आते हैं। यह संख्या न केवल भक्तों की है, बल्कि विदेशी पर्यटकों और सांस्कृतिक दर्शकों की भी। होटल और आवास की भर्ती दर 95% के पार पहुंच जाती है, और नदी पर नावें भी अतिरिक्त यात्रियों के लिए बढ़ा दी जाती हैं।

दीयों के लिए कौन जिम्मेदार है?

दीयों की व्यवस्था वाराणसी नगर निगम, स्थानीय ग्राम पंचायतों और हजारों स्वयंसेवकों की संयुक्त जिम्मेदारी है। एक लाख दीये तैयार करने, उन्हें घाटों पर लगाने और फिर नदी में बहाने का काम दिन भर चलता है। कई परिवार अपने घरों से दीये लाते हैं — यह एक परिवारगत पुण्य का अभ्यास भी है।

क्या देव दीपावली केवल हिंदू धर्म का उत्सव है?

हालांकि इसकी उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं से है, लेकिन इस उत्सव को बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के अनुयायी भी सम्मान देते हैं। वाराणसी एक बहुसांस्कृतिक शहर है, और इस रोशनी का संदेश सभी धर्मों के लिए सार्वभौमिक है — अंधेरे पर प्रकाश की विजय। इसलिए यहां आने वाले विदेशी पर्यटक भी इसे एक सांस्कृतिक घटना के रूप में देखते हैं।

क्या इस वर्ष कोई विशेष बदलाव है?

इस वर्ष वाराणसी नगर निगम ने बायोडिग्रेडेबल दीयों के उपयोग को बढ़ावा देने का फैसला किया है। पारंपरिक मिट्टी के दीयों के साथ-साथ नए प्रकार के निकास रहित दीये भी उपलब्ध कराए जाएंगे। साथ ही, नदी के पानी में दीयों के अपशिष्ट को कम करने के लिए विशेष नेट लगाए जाएंगे। यह पहल वातावरण संरक्षण और धार्मिक परंपरा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है।

देव दीपावली का आयोजन क्यों वाराणसी में ही होता है?

वाराणसी को हिंदू धर्म में 'काशी' के नाम से जाना जाता है — यह शिव का निवास स्थान माना जाता है। गंगा का यहां से निकलना और यहां निर्मलता का स्रोत होना इस शहर को अद्वितीय बनाता है। देवताओं का स्नान करने का कथा विशेष रूप से इसी घाटों के साथ जुड़ा है। अन्य शहरों में भी दीपावली मनाई जाती है, लेकिन 'देव दीपावली' का अर्थ और रूप वाराणसी में ही अनूठा है।

टिप्पणि

Ritu Patel

Ritu Patel

5 नवंबर / 2025

ये दीये जलाने का नाम लेकर भी नदी बर्बाद हो रही है। क्या कोई सोचता है कि एक लाख मिट्टी के दीये नदी में डाले जाएंगे? वो तो बस एक दिन के लिए खूबसूरत लगेंगे, लेकिन अगले दिन नदी का पानी जहर बन जाएगा। ये सिर्फ दिखावा है, असली भक्ति तो दिल में होती है।

Deepak Singh

Deepak Singh

5 नवंबर / 2025

इस उत्सव के आध्यात्मिक महत्व को तो समझा जा सकता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस तरह के विशाल आयोजनों के पीछे सिर्फ धार्मिक उत्साह नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ भी है। सरकार इसे टूरिज्म के लिए बेच रही है, और लोग इसे भक्ति का नाम देकर खरीद रहे हैं।

Rajesh Sahu

Rajesh Sahu

5 नवंबर / 2025

ये सब बातें बेकार हैं! भारत की धरोहर को बचाने के लिए हमें यही तरीका अपनाना होगा। क्या आप चाहते हैं कि हम अपनी परंपराओं को विदेशी लोगों के लिए बदल दें? नहीं! ये दीये हमारी जड़ें हैं, और हम इन्हें जलाएंगे - चाहे नदी को नुकसान हो या न हो!

Chandu p

Chandu p

5 नवंबर / 2025

इतनी खूबसूरत रोशनी को बरकरार रखने के लिए हमें नए तरीके अपनाने होंगे। बायोडिग्रेडेबल दीये बहुत अच्छा विचार है। ये न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छे हैं, बल्कि हमारी परंपरा को भी आधुनिक बनाते हैं। जय शिव शक्ति! 🙏

Gopal Mishra

Gopal Mishra

5 नवंबर / 2025

देव दीपावली का वास्तविक महत्व इस बात में नहीं है कि कितने दीये जलाए जाते हैं, बल्कि इस बात में है कि हम अपने अंदर के अंधेरे को कैसे दूर करते हैं। यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि ज्ञान और भक्ति ही वास्तविक प्रकाश हैं। यही तो वाराणसी की आत्मा है - जो कभी बदलती नहीं।

Swami Saishiva

Swami Saishiva

5 नवंबर / 2025

सब बकवास है। ये दीये जलाने वाले अपने घर में भी नहीं साफ़ करते, फिर गंगा की सफाई का झूठा दावा कर रहे हैं। ये सब बस फोटो के लिए है।

Swati Puri

Swati Puri

5 नवंबर / 2025

पर्यावरणीय चिंताओं के साथ धार्मिक अनुष्ठानों का संतुलन बनाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। लेकिन यह संभव है - बस हमें नए बायोडिग्रेडेबल सामग्री, डिजिटल रोशनी, और रीसाइकलिंग प्रणालियों को अपनाना होगा। यह आधुनिक भक्ति है।

DEVANSH PRATAP SINGH

DEVANSH PRATAP SINGH

5 नवंबर / 2025

मैंने पिछले साल वाराणसी में देव दीपावली देखी थी। नदी पर नाव में बैठकर देखना अद्भुत था - जैसे आकाश नीचे उतर आया हो। लोग गीत गा रहे थे, बच्चे हंस रहे थे। ये कोई उत्सव नहीं, ये तो जीवन का अनुभव है।

SUNIL PATEL

SUNIL PATEL

5 नवंबर / 2025

क्या आप जानते हैं कि इस दीपावली के दौरान नदी के किनारे 800 टन कचरा जमा होता है? और फिर भी लोग ये बातें करते हैं कि 'ये भक्ति है'। ये भक्ति नहीं, ये अहंकार है।

Avdhoot Penkar

Avdhoot Penkar

5 नवंबर / 2025

अगर देवता इतने ज्यादा शक्तिशाली हैं, तो फिर उन्हें दीये की जरूरत क्यों? 😅

Akshay Patel

Akshay Patel

5 नवंबर / 2025

विदेशी पर्यटकों को दिखाने के लिए ये सब किया जा रहा है। हमारी विरासत को बेचकर हम अपनी पहचान बेच रहे हैं। ये दीपावली नहीं, ये व्यापार है।

Raveena Elizabeth Ravindran

Raveena Elizabeth Ravindran

5 नवंबर / 2025

सुनो, ये सब एक बड़ा कॉन्स्पिरेसी है। गंगा को बर्बाद करने के लिए इन दीयों का इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकार और मंदिर इसे छिपा रहे हैं। अगर तुमने अभी तक नहीं देखा, तो तुम बहुत नीचे हो।

Kamal Gulati

Kamal Gulati

5 नवंबर / 2025

मैं रोज़ गंगा के किनारे जाता हूं। इन दीयों की रोशनी देखकर मेरा दिल भर जाता है। लेकिन जब वो दीये नदी में डूब जाते हैं, तो मुझे लगता है कि मैं अपने अंदर का अंधेरा भी डूब रहा हूं। क्या हम अपने अंधेरे को भी बाहर फेंक रहे हैं?

Atanu Pan

Atanu Pan

5 नवंबर / 2025

हमारी जड़ें नहीं बदलनी चाहिए, लेकिन हम उन्हें नए तरीके से जी सकते हैं। बायोडिग्रेडेबल दीये एक बहुत अच्छा कदम है। ये न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि भक्ति को भी नया रूप देता है।

Dhananjay Khodankar

Dhananjay Khodankar

5 नवंबर / 2025

मैं तो बस देखने आता हूं। नाव में बैठकर, चाय पीते हुए। दीये जल रहे हैं, लोग गीत गा रहे हैं, बच्चे हंस रहे हैं। ये बस एक शाम है। इतना सोचने की जरूरत नहीं। 😌

shyam majji

shyam majji

5 नवंबर / 2025

दीये जल रहे हैं। नदी चमक रही है। बस यही है।

shruti raj

shruti raj

5 नवंबर / 2025

क्या तुम्हें पता है कि इन दीयों के पीछे एक गुप्त गुप्तचर नेटवर्क है? वो लोग जो दीये लगा रहे हैं - वो असल में नदी को जहर देने के लिए आए हैं। और तुम सब बस फोटो खींच रहे हो! 😱

Khagesh Kumar

Khagesh Kumar

5 नवंबर / 2025

देव दीपावली का असली मतलब यह है कि हम अपने अंदर की रोशनी को पहचानें। दीये तो बस एक प्रतीक हैं। अगर हम इस रोशनी को अपने दिल में रखें, तो नदी की सफाई का ख्याल अपने आप आ जाएगा।

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