जब आप निवेश पर मुनाफा कमाते हैं, तो कैपिटल गैन्स टैक्स, एक ऐसा कर है जो शेयर, रियल एस्टेट या किसी भी पूँजीगत संपत्ति की बिक्री से हुए लाभ पर लगाया जाता है. इसे अक्सर पूँजीगत लाभ कर भी कहा जाता है। आम तौर पर दो दरें होती हैं – अल्पकालिक (एक वर्ष से कम रख‑रखाव) और दीर्घकालिक (एक वर्ष से अधिक). यह टैक्स आपके कुल आय में जोड़ता है, इसलिए इन्कम टैक्स की रिटर्न फाइल करते समय इसे ठीक‑ठीक गिनना ज़रूरी है।
अब बात करते हैं उन दो प्रमुख क्षेत्रों की जो कैपिटल गैन्स टैक्स से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हैं। पहला है शेयर ट्रेडिंग, स्टॉक्स की खरीद‑बिक्री से होने वाले मुनाफे पर कर लागू होता है. यदि आप एक साल से कम समय में शेयर बेचते हैं, तो अल्पकालिक दर (जो आपकी सामान्य आय कर दर के बराबर होती है) लागू होगी; लेकिन अगर आप शेयर दो‑तीन साल तक रखे तो दीर्घकालिक दर (10‑20%) लागू होगी, जिससे टैक्स बचत संभव बनती है। दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है रियल एस्टेट, जमीनी और भवन संपत्ति की बिक्री पर भी पूँजीगत लाभ कर लगता है. यहाँ भी धारण‑समय के आधार पर कर दर बदलती है – दो साल से कम में 20‑30%, दो‑तीन साल में 10‑20% और तीन साल से अधिक में अक्सर 20% से कम दर मिलती है, खासकर अगर आप सेक्शन 54EC या 54F जैसे सेक्शन के तहत निवेश करते हैं। दोनों केस में, निवेश‑से‑बाजार मूल्य की तुलना आपके बुक‑कॉस्ट से करके कर‑योग्य लाभ निकालते हैं।
तीसरा बड़ा खिलाड़ी है फ़्यूचर ट्रेडिंग, भविष्य के मूल्य पर सट्टा सौदे करने से मिलने वाले मुनाफे पर भी कैपिटल गैन्स टैक्स लगता है. फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट आम तौर पर अल्पकालिक माना जाता है, इसलिए इसकी कमाई आपके व्यक्तिगत आय कर स्लैब में मिल जाती है। लेकिन कई ब्रोकर्स अब कैपिटल गैन्स टैक्स को अलग मूड में दिखाते हैं, इसलिए फॉर्म 26AS में इसे स्पष्ट रूप से देखना आवश्यक है। इन तीनों एंटिटी का अपना‑अपना टैक्स प्लान है, और उनका सही समझ होना आपके वित्तीय लक्ष्य को तेज़ी से हासिल करने में मदद करता है। आप चाहे शेयर बाजार में रोज़मर्रा के ट्रेड कर रहे हों, प्रॉपर्टी खरीद‑बिक्री के माध्यम से पूँजी बढ़ा रहे हों, या फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट से अतिरिक्त आय बना रहे हों – सभी में सही टैक्स गणना और वैधी छूट (जैसे सेक्शन 80C, 54EC) का उपयोग करना जरूरी है।
पहला कदम है समय‑सीमा का ज्ञान। दीर्घकालिक रख‑रखाव से कर दर काफी घटती है, इसलिए अगर आपका पोर्टफ़ोलियो में कोई इंस्टेंट भारी मुनाफा नहीं है, तो इसे कुछ साल तक रख़ना फायदेमंद रहेगा। दूसरा, सारे ट्रांजैक्शन को डाक्यूमेंटेड रखें – ब्रोकर स्टेटमेंट, खरीद‑बेच के रसीद, तथा फॉर्म‑16 या फॉर्म‑26AS में दिखने वाले टैक्स कट‑ऑफ़ को मिलाकर अंतिम टैक्स देयता निकालें। तीसरा, टैक्स‑सेविंग सेक्शन को सक्रिय रूप से उपयोग करें; जैसे 54F में रेंट‑आवर्ती प्रॉपर्टी की बिक्री के बाद बंधक‑बिना निवेश करने पर टैक्स में 100% छूट मिल सकती है। चौथा, सिम्पल इन्कम टैक्स रिटर्न फॉर्म भरते समय कैपिटल गैन्स सेक्शन में सही एंट्री दें, नहीं तो आयकर रिटर्न रिवर्सल या पेनल्टी के जोखिम बढ़ते हैं। पाँचवाँ, हर साल के बजट में टैक्स‑रिलेटेड अपडेट को फॉलो करें – सरकार नई छूट या दर में बदलाव कर सकती है, और यह बदलते नियमों से अपडेट रहना आपको अप्रत्याशित कर बोझ से बचाएगा।
इन बातों को समझ कर आप अपनी कर‑बाधा को कम कर सकते हैं और निवेश के असली रिटर्न को महसूस कर सकते हैं। नीचे की सूची में हमने विभिन्न पहलुओं पर लिखे लेख, केस स्टडी और अपडेटेड गाइड इकट्ठा किए हैं – चाहे आप पहली बार शेयर खरीद रहे हों, प्रॉपर्टी का मालिक हों, या फ्यूचर ट्रेडर हों, यहाँ आपको वह जानकारी मिलेगी जो आपके टैक्स प्लान को आसान बनायेगी। इन लेखों को पढ़ते रहें और अपने वित्तीय सवालों के जवाब पाएँ।
केन्द्रीय बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (CBDT) ने इस वित्तीय वर्ष के लिए Cost Inflation Index (CII) को बढ़ा दिया है। यह बदलाव घर‑जायदाद, सट्टा‑संपत्ति और बैंकों के फिक्स्ड डिपॉज़िट पर मिलने वाले इंडेक्सेशन लाभ को बढ़ाकर कैपिटल गैन्स टैक्स को कम करेगा। नई CII दरें किन वस्तुओं पर लागू होंगी, इसका क्या असर पड़ेगा और करदाताओं को क्या ध्यान देना चाहिए, जानिए इस लेख में।
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