भगवान शिव एक ऐसे देवता हैं जिन्हें सिर्फ पूजा का विषय नहीं, बल्कि भगवान शिव, हिंदू धर्म में विनाश और पुनर्जन्म के प्रतीक, जो त्रिदेव के एक अंग हैं और जिनकी लीलाएँ जीवन के चक्र को समझने की कुंजी हैं भारत की आत्मा का हिस्सा माना जाता है। वो केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक अनुभव हैं—जहाँ त्याग और शक्ति एक हो जाती हैं। उनकी त्रिशूल, नीलकंठ, और जटाएँ किसी कथा के शब्द नहीं, बल्कि जीवन के गहरे सत्यों के प्रतीक हैं।
शिव के साथ जुड़े कई प्रतीक हैं, जिन्हें आप रोज़ देखते हैं लेकिन शायद नहीं समझते। लिंग, शिव का सबसे प्रचलित प्रतीक, जो ऊर्जा के अनंत स्रोत को दर्शाता है और जिसकी पूजा घरों और मंदिरों में होती है। नटराज, शिव का नृत्य रूप, जो ब्रह्मांड के निरंतर चक्र को दर्शाता है—जन्म, मृत्यु, और पुनर्जन्म। ये कोई आर्टिस्टिक डिज़ाइन नहीं, बल्कि जीवन का एक सीधा सबक है। शिव की लीलाएँ—जैसे अमृत का निकालना, दक्ष यज्ञ का नाश, या गंगा को अपने जटाओं में रोकना—सिर्फ कहानियाँ नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान के बिंदु हैं।
भारत के हर कोने में शिव की छाप है। बिहार में छठ पूजा के समय लोग सूर्य की पूजा करते हैं, लेकिन उससे पहले शिव को नमन करते हैं। उत्तराखंड के कैलाश में शिव का निवास माना जाता है। दार्जिलिंग या दिल्ली के घरों में शिवलिंग की पूजा रोज़ की जाती है। ये सब कुछ इसलिए है क्योंकि शिव कोई दूर का देवता नहीं, बल्कि जीवन के हर पल का हिस्सा हैं।
इस पेज पर आपको शिव से जुड़े उन सभी पहलुओं के बारे में लेख मिलेंगे—जो आपको उनकी गहराई को समझने में मदद करेंगे। क्या आप जानते हैं कि शिव की त्रिशूल के तीन नोक आपके जीवन के तीन गुणों को दर्शाते हैं? या फिर शिव के नटराज का नृत्य आज के विज्ञान के ब्रह्मांड के सिद्धांतों से कैसे मेल खाता है? यहाँ आपको ऐसे ही अनोखे तथ्य, पूजा के नियम, और लोककथाएँ मिलेंगी—जो आपको शिव को बस एक देवता नहीं, बल्कि जीवन के साथ जुड़े एक साथी के रूप में दिखाएँगी।
देव दीपावली 2025 को 5 नवंबर को वाराणसी के घाटों पर एक लाख दीयों की ज्योति से मनाया जाएगा। प्राशोध काल मुहूर्त 5:15 बजे से 7:50 बजे तक, भगवान शिव की विजय और गंगा के शुद्धिकरण का प्रतीक।
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