रावण ने शनि देव की टांग क्यों काटी: रहस्यमय कथा और हनुमान का अद्भुत वरदान

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रावण ने शनि देव की टांग क्यों काटी: रहस्यमय कथा और हनुमान का अद्भुत वरदान

रावण, शनि देव और चौंकाने वाली कथा

हिंदू पौराणिक कथाओं में रामायण की यह कहानी जितनी रहस्यमय है, उतनी ही सीख देने वाली भी है। रावण—लंकापति और असाधारण शक्ति के मालिक—ने जब तीनों लोकों पर विजय पाई, तो अपनी ताकत का प्रतीक दिखाने के लिए नवग्रहों को अपने सिंहासन के नीचे दबा दिया। लेकिन इन ग्रहों में शनि देव का अलग ही रुतबा था। उनकी दृष्टि यानी ‘शनि दृष्टि’ को सबसे भयानक माना जाता है। लोगों में आज भी उनकी वक्र दृष्टि से डर बना हुआ है।

रावण का दंभ अब उड़ान पर था। देवताओं को उसके बढ़ते बलशाली व्यवहार ने परेशान कर दिया। अब सीधे टकराव से तो कुछ होना नहीं था, इसलिए सभी देवता नारद मुनि के पास पहुंचे। नारद ने रणनीति गढ़ी। रावण के दरबार में जाकर उन्होंने कहा, “अगर ग्रह सच में पराजित हैं तो इन्हें अपनी पीठ नहीं, छाती के बल दबाओ—तभी असली अपमान होगा।” रावण, जो हमेशा चापलूसी पसंद करता था, मान गया। नवग्रहों को उल्टा करा दिया गया—अब उनकी छाती रावण की तरफ थी।

यहीं से खेल बदल गया। जैसे ही शनि देव का सामना सीधे रावण से हुआ, उनकी दृष्टि उस पर पड़ गई। फिर क्या था! रावण के सम्राज्य में समस्याएँ सिर उठाने लगीं, परेशानियाँ घेरने लगीं। रावण जब कारण समझा, तो सीधा शनि देव के पास पहुँचा। गुस्से में आकर न सिर्फ़ शनि को एक अंधेरे कालकोठरी में डाल दिया, बल्कि उनकी एक टांग तक काट दी। मकसद था शनि की शक्ति सीमित करना, ताकि उनकी चलने-फिरने और षडयंत्र करने की ताकत खत्म हो जाए।

सालों बीत गए, शनि देव दर्द और कैद में पड़े रहे।

हनुमान का उद्धार और शनि देव का वरदान

रामायण में आगे जब राम रावण के खिलाफ युद्ध के लिए निकले, तो हनुमान भी लंका पहुँचे। सीता की खोज में जब वो लंका में भटक रहे थे, तभी उन्हें अँधेरी कोठरी से करुण चिल्लाहट सुनाई दी। वहाँ शनि देव बंद पड़े थे। हनुमान ने अपनी गदा से कालकोठरी का ताला तोड़ा और शनि देव को मुक्ति दिलाई।

मुक्ति के बदले शनि देव ने हनुमान से वरदान माँगने को कहा। हनुमान ने बड़ी ही सरल मांग रखी: “मेरे भक्तों को तुम्हारे अशुभ प्रभाव से बचाना।” शनि देव ने भी तत्काल वादा किया—हनुमान के सच्चे भक्तों को न साढ़े साती सताएगी, न शनि की विशेष वक्र दृष्टि। यही वजह है कि शनि की दशा-कुंडली, दोष या साढ़े साती का डर लगते ही घर-घर में हनुमान की पूजा होती है।

आज भी कई जगहों पर शनि देव को लंगड़ाकर चलते हुए दिखाया जाता है—कहानी के इस हिस्से के कारण लोग मानते हैं कि रावण द्वारा टांग काटने के बाद शनि देव हमेशा अपूर्ण रहे।

यह कथा सिर्फ रावण, शनि और हनुमान के चरित्र को उजागर नहीं करती, बल्कि अहंकार, क्रूरता, और सच्चे भक्ति की शक्ति का भी बेहतरीन उदाहरण है। हर शनिवार को या शनि की दशा में मंदिरों और घरों में हनुमान चालीसा की गूंज भी इसी मान्यता से जुड़ी है।

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