Modi ने G7 शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं को 9 विशिष्ट भारतीय हस्तशिल्प उपहार

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Modi ने G7 शिखर सम्मेलन में विश्व नेताओं को 9 विशिष्ट भारतीय हस्तशिल्प उपहार

जब Narendra Modi, प्रधानमंत्री of भारत ने 19 जून 2025 को G7 शिखर सम्मेलनKananaskis, Canada में भाग लिया, तो उन्होंने एक चौंकाने वाली साँचा तैयार कर रखी थी – प्रत्येक सहयोगी नेता को भारत के अलग‑अलग राज्य की प्रतीकात्मक हस्तशिल्प उपहार देना। यह कदम सिर्फ कूटनीति नहीं, बल्कि ‘इंक्रेडिबल इंडिया’ को विश्व मंच पर चमकाने की रणनीति थी।

संस्कृतिक कूटनीति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत ने स्वतंत्रता के बाद से अपने हस्तशिल्प को विदेश में प्रस्तुत करने के कई अवसर देखे हैं, पर 21वीं सदी में यह प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ी। पंतप्रधानों द्वारा शिष्टाचार सभा, द्विपक्षीय बैठक या अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में रखे जाने वाले उपहार, अक्सर स्थानीय कारीगरों की कहानियों को साथ ले जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में काश्मीर के पौत्री शॉल को ‘शांति का प्रतीक’ कहा गया था; वही 2010 के वार्षिक ‘इंडिया‑ईयू व्यापार मंच’ में कर्नाटक के सिल्क साड़ी को आर्थिक सहयोग का ‘धागा’ माना गया। अब Modi का यह नया प्रयास, विभिन्न प्रान्तों की विशिष्ट शैलियों को विश्व नेताओं के साथ जोड़ता है, जिससे कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान मिल रही है।

उपहारों का विस्तृत विवरण

हाथ से उत्कीर्ण ब्रास बॉधि ट्री (बिहार) को कनाडा के प्रधानमंत्री Mark Carney को प्रस्तुत किया गया। यह वृक्ष बुद्ध के ज्ञान का प्रतीक है, और बांसुरी जैसी ध्वनि के साथ शांति के संदेश को दर्शाता है। फ्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron को Emmanuel Macron, राष्ट्रपति of फ़्रांस को तमिलनाडु के डोक्रा शैली में निर्मित “डोक़्रा नंदी” दी गई, जो खोखले मोम में लोहा भरकर बनायी़ जाती है – नंदी की शक्ति, धैर्य और भक्ति को दर्शाती हुई।

Mexico के राष्ट्रपति Claudia Sheinbaum Pardo को महाराष्ट्र के वार्ली जनजाति के कलाकारों द्वारा तैयार किया गया वार्ली पेंटिंग दिया गया। सफेद चावल का पेस्ट और मिट्टी की पृष्ठभूमि पर गाँव के दैनिक जीवन, नाच‑गान और खेती‑किसानी को दर्शाते हुए यह चित्र एक सामुदायिक भावना को उजागर करता है। जर्मनी के Chancellor Friedrich Merz को ओडिशा के कांकर चक्र का रेत‑पत्थर प्रतिकृति दी गई। चक्र, 13वीं सदी के सूर्य मंदिर से प्रेरित, भारत की वास्तुशिल्पीय शान को प्रतिबिंबित करता है।

South African President Cyril Ramaphosa, राष्ट्रपति of दक्षिण अफ्रीका को छत्तीसगढ़ के बैस्टर क्षेत्र से आया डोक़्रा घोड़ा उपहार में मिला। खोखले मोम विधि से तैयार यह घोड़ा, न केवल पारम्परिक कला का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि भारतीय कारीगरों की धातु‑कार्य की दशा को भी उजागर करता है। दक्षिण कोरियाई President Lee Jae‑myung को बिहार के मिथिला क्षेत्र की मशहूर मधुबनी पेंटिंग दी गई, जिसमें पांडुलिपि‑शैली के पैटर्न, देवी‑देवताओं और सामाजिक कथा को जीवंत रंगों में उलझा दिया गया।

ऑस्ट्रेलिया के Prime Minister Anthony Albanese को कोल्हापूर के चाँदी के बर्तनों का एक सेट और ब्राज़ील के President को मेघालय के बाँस‑काठ से बनी नाव दी गई। प्रत्येक वस्तु, अपने‑अपने राज्य की विशेष कला‑कौशल को दर्शाती है और स्थानीय कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान देती है।

नेताओं की प्रतिक्रियाएँ और भारतीय कारीगरों पर प्रभाव

नेताओं की प्रतिक्रियाएँ और भारतीय कारीगरों पर प्रभाव

बहुपक्षीय मंच पर ये उपहार अचानक ध्यान का केंद्र बन गए। Macron ने “विचारशील और गहरी सांस्कृतिक अंतर को जोड़ने वाला” कहा, जबकि Ramaphosa ने “डोक़्रा कला की अद्भुत बारीकी” की सराहना की। Lee Jae‑myung ने मधुबनी पेंटिंग को “संस्कृति‑पर्यटन के द्वार खोलने वाला” बताया। इन व्यक्तिगत टिप्पणियों ने न केवल उपहार की कारीगरों को सम्मानित किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हस्तशिल्प की मांग को भी बढ़ा दिया।

प्रमुख ट्रेड एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार, G7 शिखर सम्मेलन के बाद भारत में डोक़्रा, वार्ली और मधुबनी कला के निर्यात में 12% की बढ़ोतरी देखने को मिली। कई कारीगरों ने कहा कि अब उन्हें बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठनों से ऑर्डर मिल रहे हैं, और भारत सरकार की “हस्तशिल्प विकास योजना” को नई स्फूर्ति मिली है।

नर्यातरंग कूटनीति के व्यापक परिणाम

ऐसे सांस्कृतिक उपहार ‘सॉफ्ट पावर’ के रूप में कार्य करते हैं—वे आर्थिक गठजोड़ का सीधा माध्यम नहीं, पर अंतरराष्ट्रीय समझ को गहरा करते हैं। भारत ने अपनी विविधता को उजागर करने के साथ‑साथ कारीगरों के आर्थिक सशक्तिकरण को भी लक्ष्य बनाया। इस कूटनीति का असर व्यापार वार्तालापों में भी दिखा। जर्मनी के प्रतिनिधिमंडल ने ऊर्जा‑सहयोग के दौरान भारतीय कारीगरों के लिए ‘उत्पादन के लिए सब्सिडी’ की बात उठाई।

भविष्य में, ऐसा अनुमान है कि भारत अगले अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन (2027 में यूरोप) में भी समान हस्तशिल्प उदहारणों के साथ उपस्थित होगा। इस बार योजना में डिजिटल टूरिज्म प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से कारीगरों के काम को ऑनलाइन बाजारों में लाने की भी सोच है, जिससे ‘क्लिक‑से‑खरीद’ के मॉडल को बढ़ावा मिलेगा।

इतिहास में समान उदाहरण

इतिहास में समान उदाहरण

सचिन चंद्रा के ‘हिंदुस्तानी शिल्प’ को 2016 में यूरोपीय संघ के समिट में उपहार स्वरूप देकर भारत ने उसी प्रकार की रणनीति अपनाई थी। तब से कारीगरों को राष्ट्रीय सम्मान, ‘पडोसी पुरस्कार’ और अंतरराष्ट्रीय फेस्टिवल invitations मिले हैं। Modi का यह प्रयास इन प्रथाओं को औद्योगिक स्तर पर विस्तारित करने का नया प्रयोग है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

इन उपहारों से भारत के कारीगरों को क्या लाभ हुआ?

उपहारों से कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली, जिससे निर्यात आदेश बढ़े। Ministry of Textiles की रिपोर्ट के अनुसार, शिखर सम्मेलन के बाद डोक़्रा और मधुबनी कला के ऑर्डर में 12% की वृद्धि हुई, और कई छोटे उद्योगों को नए बाजारों तक पहुँच मिला।

क्या सभी उपहार भारतीय कारीगरों द्वारा निर्मित थे?

हाँ, प्रत्येक वस्तु को भारत के विभिन्न राज्यों के पारम्परिक कारीगरों ने हाथ‑से‑बनाया। उदाहरण के लिये, ब्रास बॉधि ट्री बिहार के कुम्हारों ने, डोक़्रा नंदी तमिलनाडु के धातु‑शिल्पकारों ने, और वार्ली पेंटिंग महाराष्ट्र के वारली जनजाति ने तैयार किया।

इन उपहारों का चयन कैसे किया गया?

Modi सरकार ने Ministry of Culture, Ministry of Tourism और कई कारीगर संघों के साथ मिलकर प्रत्येक नेता की राष्ट्रीय पहचान के अनुरूप वस्तु चुनी। उदाहरण के लिये, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति को घोड़े का प्रतीक चुना गया, क्योंकि घोड़ा उस देश में शक्ति और गति का प्रतीक है।

क्या इस तरह की सांस्कृतिक कूटनीति भविष्य में जारी रहेगी?

विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सरकार ‘सोफ्ट पावर’ को बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक उपहारों को एक नियमित उपकरण बना रही है। आगामी 2027 के यूरोप G7 शिखर सम्मेलन में भी समान रणनीति अपनाने की संभावना जताई गई है, साथ ही डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से कारीगरों को विश्व बाजार से जोड़ने की योजना भी है।

टिप्पणि

Jyoti Bhuyan

Jyoti Bhuyan

11 अक्तूबर / 2025

वाह भाई, मोदी जी की ये कला-उपहार वाली चाल वाकई कमाल की है! ग७ में भारत की विविधता की झलक दिखाना, कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाना, बिल्कुल सही टाइमिंग है। अब देखेंगे दुनिया हमारे हाथ के काम की सराहना करे, और छोटे शिल्पकारों को बड़ा ऑर्डर मिलेगा। यही तो सॉफ़्ट पावर का असली जादू है।

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