भारत $773 बिलियन निर्यात से सिंगापुर $778 बिलियन से पीछे – कारण क्या?

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भारत $773 बिलियन निर्यात से सिंगापुर $778 बिलियन से पीछे – कारण क्या?

जब लॉरेन्स वॉंग, प्रधान मंत्री सिंगापुर के, सिंगापुर की सरकार की ओर से, 2‑4 सितम्बर 2025 को नई दिल्ली आए, तो एक बड़ा सवाल सामने आया: 1.4 अरब लोगों वाले भारत का कुल निर्यात $773 बिलियन, जबकि 5.6 मिलियन आबादी वाले सिंगापुर का $778 बिलियन‑वाला निर्यात, ये कैसे संभव है?

वर्तमान निर्यात आँकड़े और उनका अर्थ

साइबेक्स.इन द्वारा 21 अगस्त 2025 को जारी किए गए डेटा के अनुसार, भारत ने 2025 में $773 बिलियन निर्यात किया, जबकि सिंगापुर ने $778 बिलियन। प्रमुख अंतर केवल मात्रा में नहीं, बल्कि मूल्य‑वृद्धि में है। सिंगापुर के निर्यात का 34.5 % मशीनरी‑इलेक्ट्रॉनिक, 18.2 % खनिज ईंधन‑तेल और 13.3 % इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बनता है। भारत की निर्यात टोकरी में पेट्रोलियम उत्पाद ($54.2 बिलियन, 16.96 %), रत्न‑ज्वेलरी, ऑटोमोबाइल और फार्मास्यूटिकल्स प्रमुख हैं।

द्विपक्षीय व्यापार का वर्तमान स्वरूप

वाणिज्य मंत्रालय (भारत) के सितम्बर 2025 के रिपोर्ट के अनुसार, भारत‑सिंगापुर व्यापार में FY 2024‑25 में $8.3 बिलियन का घाटा बढ़ा। भारत ने सिंगापुर को $12.98 बिलियन निर्यात किया – जिसमें पेट्रोलियम ($4.97 बिलियन) और इंजीनियरिंग सामान ($4.47 बिलियन) सबसे बड़ा हिस्सा थे। वहीं आयात में सिंगापुर से $21.3 बिलियन की लागत – मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक्स और बुलियन – हुआ। यह अंतर साफ़ दर्शाता है कि भारत कच्चे माल को निर्यात कर रहा है, जबकि सिंगापुर वही सामग्री प्रोसेस करके उच्च‑मूल्य वाले उत्पाद बनाता है।

नवीन रणनीतिक साझेदारी का लक्ष्य

उक्त राजनयिक दौरे में दो‑तीन प्रमुख दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण कॉम्प्रिहेंसिव स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप रोडमैप (नई दिल्ली) शामिल है। भारत के वाणिज्य एवं व्यापार के संयुक्त सचिव संजय वर्मा और सिंगापुर के लीम हुई हुआ, स्थायी सचिव, ट्रेड एंड इंडस्ट्री मंत्रालय ने इस दस्तावेज़ को अंतिम रूप दिया। लक्ष्य 2027 तक द्विपक्षीय व्यापार को $50 बिलियन तक बढ़ाना है, जिसमें डिजिटल ट्रेड सुविधा, मानकों की पारस्परिक मान्यता और हरे‑तकनीक सहयोग शामिल हैं।

संधि के प्रमुख बिंदु और कार्य‑योजना

संधि के प्रमुख बिंदु और कार्य‑योजना

  • डिजिटल प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए एक‑सिंगल‑विंडो प्लेटफ़ॉर्म स्थापित करना।
  • उच्च‑तकनीकी उत्पादों के सर्टिफ़िकेशन में समान मानकों को मान्यता देना, जिससे औद्योगिक एग्ज़िट टाइम कम हो।
  • हर साल $5 बिलियन का संयुक्त ग्रीन‑टेक निवेश, विशेषकर इलेक्ट्रोलाइटिक हाइड्रोजन और सौर‑ऊर्जा उपकरणों में।
  • प्रत्येक तिमाही के 15 दिसंबर को प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना, जिससे पारदर्शिता बनी रहे।

क्या इस योजना से भारत का निर्यात‑प्रोफ़ाइल बदल पाएगा?

डॉ. राजेश कुमार, रिसर्च एंड इन्फ़ॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज़ (RIS) के निदेशक, 5 सितम्बर 2025 की एक साक्षात्कार में कहते हैं, “भारत की निर्यात चुनौती मात्रा नहीं, बल्कि मूल्य‑वृद्धि है। हम कच्चा पेट्रोलियम निर्यात करते हैं, जिसे सिंगापुर प्रोसेस करके पेट्रो‑केमिकल्स में बदलता है, और फिर वह महँगा बना रहता है।” इसी तरह, पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविंद सुब्रमणियन ने कहा, “भारत का निर्यात‑to‑GDP अनुपात 18‑20 % पर स्थिर है, जबकि सिंगापुर 150 % से ऊपर। यह लॉजिस्टिक, अनुपालन और बाजार‑पहुँच में मौलिक बाधाओं का संकेत है।”

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भविष्य की राह

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भविष्य की राह

सिंगापुर को विश्व के सबसे सक्रिय ट्रेड हब में से एक माना जाता है, इसकी रणनीतिक स्थिति, खुली बेज़ीबिलिटी और उन्नत बुनियादी ढाँचा इसे निर्यात‑उत्पादकों के लिए स्वर्ग बनाता है। इसके विपरीत, भारत की निर्यात संरचना अभी भी मुख्य रूप से कच्चे माल और बेसिक मैन्युफ़ैक्चरिंग पर फोकस करती है, जैसा कि विश्व सर्वेक्षण (World Bank WITS, अगस्त 2025) ने दिखाया। इस अंतर को पाटने के लिए सरकार ने बुनियादी संरचना सुधार, मानक‑संधियों को तेज़ करने और विशेष आर्थिक ज़ोन (SEZ) के अनुमोदन पर जोर दिया है।

सारांश में, दो देशों के बीच निर्यात‑संतुलन का मुद्दा मात्र अंक‑की‑तुलना नहीं, बल्कि वैल्यू‑चेन में कौन‑कौन चरणों को नियंत्रित कर रहा है, इसका प्रतिबिंब है। यदि भारत डिजिटल, वित्तीय और हरित एकीकरण को तेज़ी से लागू कर पाए, तो 2027 तक $50 बिलियन का लक्ष्य सिर्फ़ एक संख्यात्मक आंकड़ा नहीं, बल्कि भारत के निर्यात‑परिदृश्य में परिवर्तन का संकेत बन सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सिंगापुर के उच्च‑मूल्य निर्यात भारत के लिए क्या अवसर पैदा करते हैं?

सिंगापुर के इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी निर्यात भारत को आपूर्ति श्रृंखला में मध्यस्थ बनाते हैं। यदि भारतीय फर्में इन क्षेत्रों में नवीनीकरण या असेंबली क्षमताएँ जोड़ें, तो वे मूल्य‑वृद्धि का हिस्सा खुद ले सकते हैं, जिससे निर्यात‑आमदनी बढ़ेगी।

नया रोडमैप डिजिटल ट्रेड में कौन‑से ठोस कदम लाएगा?

एक संयुक्त डिजिटल पोर्टल तैयार होगा जहाँ सभी कस्टम‑डॉक्यूमेंट, प्रमाणपत्र और भुगतान एक ही इंटरफ़ेस में प्रबंधित हो सकेंगे। इससे निर्यात‑प्रक्रिया में औसत 30 % समय बचत की उम्मीद है।

क्या भारत‑सिंगापुर FDI की बढ़ोतरी निर्यात पर असर डालेगी?

डिपीआईटी के डेटा के अनुसार, सिंगापुर ने अब तक $174.89 बिलियन निवेश किया है। यह फोकस्ड निवेश उच्च‑तकनीकी मैन्युफ़ैक्चरिंग और ग्रीन‑टेक क्षेत्रों में है, जो सीधे भारत के निर्यात बास्केट को कोर टेक वेस्टी ओर बदलने में मदद कर सकता है।

भविष्य में भारत‑सिंगापुर व्यापार में प्रमुख चुनौतियाँ क्या होंगी?

मुख्य चुनौतियाँ बुनियादी ढाँचा (पोर्ट‑इन्फ्रास्ट्रक्चर), कस्टम‑क्लियरेंस में मानक‑भेद, तथा तकनीकी ज्ञान की कमी हैं। इनको हल करने में समय लग सकता है, लेकिन रोडमैप के तहत नियमित मॉनीटरिंग से प्रगति को तेज़ किया जा सकता है।

2027 तक $50 बिलियन लक्ष्य कितना वास्तविक है?

यदि दोनों पक्ष डिजिटल फ़्रेमवर्क और ग्रीन‑टेक निवेश को 2025‑2026 में 80 % तक लागू कर पाते हैं, तो $50 बिलियन लक्ष्य संभव है। वाणिज्य मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, यह लक्ष्य 2027‑28 में 15 % वार्षिक वृद्धि के बराबर है, जो चुनौतीपूर्ण परंतु अजेय नहीं है।

टिप्पणि

Ranga Mahesh Kumara Perera

Ranga Mahesh Kumara Perera

10 अक्तूबर / 2025

भारत का निर्यात बड़े हिस्से में कच्चा माल है, सिंगापुर वही माल को प्रोसेस करके उच्च मूल्य के उत्पाद बनाता है, इस वैल्यू‑एडिशन की वजह से उनका एक्सपोर्ट टोटल थोड़ा अधिक आता है, इसलिए केवल टोटल संख्या देखकर तुलना करना न्यायसंगत नहीं, आगे की नीतियों को इस अंतर को कम करने के लिए मूल्यवृद्धि पर फोकस चाहिए।

Shonali Nazare

Shonali Nazare

10 अक्तूबर / 2025

डेटा दिखाता है कि सिंगापुर की वैल्यू‑चेन अधिक एन्हांस्ड है ;)

Pallavi Gadekar

Pallavi Gadekar

10 अक्तूबर / 2025

मैं बहुत एक्साइटेड हूँ इस टॉपिक को देखके, कच्चा माल का निर्यात तो हमारी ताकत है पर प्रोसेसिंग में पीछे पड़ रहे हैं, सिंगापुर की हाई‑टेक मैन्युफैक्चरिंग हमें एश्योर कर देनी चाहिए, वरना हम हमेशा कच्चा माल बेच कर कम मार्जिन रह जाएगा, इसलिए ग्रीन‑टेक और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में अब तुरंत इनवेस्टमेंट जरूरी है।

ramesh puttaraju

ramesh puttaraju

10 अक्तूबर / 2025

सच में, भारत की कच्ची एक्सपोर्ट तो बहुत है, पर प्रोसेसिंग का फादर नहीं मिला 😒.

Kuldeep Singh

Kuldeep Singh

10 अक्तूबर / 2025

मोहित करने वाली बात है कि हम अभी भी केवल कच्चे माल पर भरोसा करते हैं, जबकि सिंगापुर ने फाइनलीटेस्ट प्रोडक्ट्स में कदम रख लिया है। यह न सिर्फ हमारी आर्थिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी पीछे छोड़ देता है। हमें नीतियों को पुनः परिभाषित करके मूल्य‑वृद्धि के रास्ते खोलने चाहिए। तब ही निर्यात‑से‑GDP अनुपात में उल्लेखनीय सुधार होगा।

Roushan Verma

Roushan Verma

10 अक्तूबर / 2025

दोनों देशों की साझेदारी को देखना दिलचस्प है। यदि हम सहयोगी रूप से तकनीकी एन्हांसमेंट पर काम करें तो दोनों को फायदा होगा। यह रोडमैप वास्तव में सकारात्मक दिशा में एक कदम है।

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