18 सितंबर, 2024
21 अप्रैल, 2025
रिपोर्ट: अश्विन
Baaghi 4 का ट्रेलर रिलीज होते ही सोशल मीडिया पर धमाका हो गया। 30 अगस्त 2025, 11:11 बजे ड्रॉप हुए इस कट में टाइगर श्रॉफ अपने करियर के सबसे बेरहम मोड में दिखते हैं—खून, आग, और क्रोध से भरा एक ऐसा वर्ल्ड जहां प्यार और जुनून के बीच की लकीर मिट जाती है। टैगलाइन—“हर आशिक एक विलेन है”—पहले ही फ्रेम से फिल्म का डार्क मूड सेट कर देती है।
ओपनिंग शॉट में रॉनी (टाइगर) कुल्हाड़ी लिए बदमाशों पर टूट पड़ता है। कट्स तेज हैं, साउंड डिज़ाइन भारी—हड्डियों के टूटने की आवाजें, गाढ़े बेस वाला बैकग्राउंड, और कैमरा इतना पास कि हिंसा से नज़र हटाना मुश्किल हो। दूसरी तरफ, एक चर्च के भीतर खून से लथपथ संजय दत्त का किरदार—कठोर, शांत और खतरनाक—जिससे रॉनी का आमना-सामना ट्रेलर की धुरी बनता है।
कहानी मनोवैज्ञानिक थ्रिलर की तरफ झुकती दिखती है। रॉनी को यकीन है कि उसकी मोहब्बत अलीशा (मिस यूनिवर्स 2021 हरनाज़ संधू) नहीं रही। मगर उसके आस-पास के लोग उसे ही समझाते हैं कि अलीशा कभी थी ही नहीं—वो सिर्फ उसके दिमाग की उपज है। गैसलाइटिंग, यादों से छेड़छाड़ और ‘अनरिलाएबल नैरेटर’—ये सारे संकेत बताते हैं कि फिल्म सिर्फ एक्शन नहीं, दिमागी खेल भी खेलेगी। ट्विस्ट तब आता है जब ट्रेलर के आखिरी हिस्से में संजय दत्त के हाथों अलीशा के कैद होने के संकेत मिलते हैं—मतलब या तो रॉनी सही है, या खेल उससे कहीं बड़ा।
टाइगर को दो अलग-अलग शेड्स में दिखाया गया—पहले नेवी यूनिफॉर्म में एक नियंत्रित, अनुशासित ऑफिसर; फिर वही चेहरा, पर आग में तप कर बदला लेने वाला इंसान। उनके ट्रेडमार्क हाई-किक्स, फ्लिप्स और क्लोज-क्वार्टर लड़ाइयों के बीच गोर की लेवल इस बार बढ़ाई गई है—चाकू, कुल्हाड़ी, इम्पेलमेंट्स और बेजिझक ब्लड स्प्लैशेज। ये टोन मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा में विरले दिखता है और साफ बताता है कि निर्माताओं ने ‘क्लीन’ एक्शन की जगह ‘रॉ’ भाषा चुनी है।
संजय दत्त का स्क्रीन-प्रेज़ेंस भारी पड़ता है—कम संवाद, ज्यादा ठंडा खतरा। उनकी एंट्री से ही पता चलता है कि भिड़ंत बराबरी की नहीं, मनोवैज्ञानिक बढ़त की है। हरनाज़ संधू का रोल रोमांटिक ट्रैक से ऊपर उठकर कहानी का रहस्य बनता है। पहली झलक में उनका स्क्रीन कॉन्फिडेंस साफ दिखता है। सोनम बाजवा भी अहम हिस्से में दिखती हैं, पर ट्रेलर उनके किरदार को जानबूझकर छुपाए रखता है ताकि सरप्राइज़ बना रहे।
एडिटिंग शार्प है—माइक्रो कट्स, व्हिप पैन, और हाई-फ्रेम-रेट शॉट्स का मिला-जुला इस्तेमाल। कलर पैलेट गहरा और ठंडा है—नीलापन, टंग्स्टन लाइट और लो-की शैडोज़—जिससे चर्च, अंडरग्राउंड सेट और बारिश में शूट हुई फाइट्स और भी असरदार लगती हैं। बैकग्राउंड स्कोर परसिस्टेंट थरथराहट पैदा करता है, जो टाइगर के ब्रेकडाउन और रैम्पेज को एक ही मूड में बांध देता है।
हिंसा की मात्रा को देखते हुए सेंसर सर्टिफिकेशन पर नजर रहेगी। मौजूदा ट्रेंड के हिसाब से ‘ए’ या कट्स के साथ ‘यू/ए’—दोनों संभावनाएं खुली हैं। निर्माताओं की तरफ से आधिकारिक जानकारी बाकी है, लेकिन जाहिर है कि फिल्म 18-प्लस ऑडियंस को खुलकर टारगेट कर रही है।
बागी फ्रैंचाइज़ की रीढ़ हमेशा टाइगर का फिजिकलिटी-ड्रिवन स्टारडम रहा है। 2016 की पहली फिल्म में उन्होंने देसी मार्शल-आर्ट्स वाली इमेज बनाई। 2018 में Baaghi 2 बड़े पैमाने पर चली और टाइगर को एक्शन जनर का फ्रंटफुट स्टार बना दिया। 2020 की Baaghi 3 ठीक रिलीज के समय कोविड-19 लॉकडाउन की मार झेल गई—थिएटर्स बंद हुए और संभावित कलेक्शंस दब गए। उसी के बाद से फ्रैंचाइज़ पर एक सवाल था—क्या अगला कदम स्केल बढ़ाएगा या टोन बदलेगा? ट्रेलर बताता है, टीम ने दोनों किया है।
इस बार डायरेक्टर की कमान ए. हर्षा के हाथ में है, जो कन्नड़ इंडस्ट्री में अपने कड़क, मिट्टी की खुशबू वाले एक्शन और मेलोड्रामा के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी स्टाइल में बल, खून और भाव—तीनों साथ चलते हैं। यही सिग्नेचर यहां भी दिखता है—सेट-पीसेज़ में प्रैक्टिकल स्टंटिंग का भरोसा, वायर-वर्क और वीएफएक्स का संयमित उपयोग, और सबसे बढ़कर, हिंसा को पॉलिश करने की बजाय उसकी कड़क आवाज को ज्यों का त्यों रहने देना।
प्रोड्यूसर साजिद नाडियाडवाला और उनकी कंपनी नाडियाडवाला ग्रैंडसन एंटरटेनमेंट ने ट्रेलर ड्रॉप और रिलीज के बीच महज़ एक हफ्ते की विंडो चुनी है—यह आज के कंटेंट-ओवरलोड दौर में एक दिलचस्प रणनीति है। लंबी कैंपेनिंग की जगह शॉर्ट, हाई-इंटेंसिटी ब्लिट्ज—ट्रेलर, कैरेक्टर स्पॉट्स, और एक-दो मैसिव टीवी/डिजिटल बर्स्ट। 11:11 जैसी टाइम-स्टैम्पिंग भी ब्रांडेड एस्थेटिक बनाती है—फैंस को साझा करने के लिए एक छोटी, याद रहने वाली डिटेल मिल जाती है।
फैन रिस्पॉन्स फिलहाल जोरदार है। कमेंट-सेक्शन में “वाइल्ड फायर” जैसे शब्द बार-बार दिख रहे हैं, और शॉर्ट-वीडियो प्लेटफॉर्म्स पर फाइट बीट्स को कट करके एडिट्स बनने लगे हैं। ट्रेंडिंग टैग सामने आए तो हैरानी नहीं—टाइगर की जेन-जेड फैनबेस और सिंगल-स्क्रीन ऑडियंस दोनों के लिए ये पैकेज आकर्षक है।
इंडस्ट्री संदर्भ में देखें तो दर्शक पिछले कुछ सालों से “मास एक्शन” की तरफ झुके हैं—केजीएफ, पुष्पा, सालार, और एनिमल जैसी फिल्मों ने हिंसा और इमोशन के हाई-डेसिबल मिक्स को मेनस्ट्रीम बना दिया। Baaghi जैसी अर्बन-एक्शन फ्रैंचाइज़ का इस भाषा में शिफ्ट होना स्वाभाविक है। फर्क बस इतना है कि यहां प्रेमकहानी को जान-बूझकर अंधेरे गलियारों में ले जाया गया है—जहां हीरो खुद से भी लड़ता है।
टेक्निकल साइड पर ट्रेलर कई संकेत देता है—फाइट कोरियोग्राफी में क्लोज-रेंज कॉम्बैट और इम्प्रोवाइज्ड वेपन्स की भरमार, लॉन्ग टेक्स के साथ अचानक कट्स, और मैकगाइवर-स्टाइल सोलो असॉल्ट्स। चर्च सेट-पीस का प्रकाश-संयोजन ब्लेसीफुल और हिंसक, दोनों भाव साथ जगाता है—इस विरोधाभास से दृश्य और यादगार बनता है। बैकग्राउंड स्कोर इलेक्ट्रॉनिक थरथराहट और धातुई परकशंस पर टिका है, जो क्लाइमेक्स बिल्ड-अप में धड़कन तेज करता है।
कास्टिंग भी फिल्म की बेचैनी को आवाज देती है। संजय दत्त पिछले कुछ समय से खतरनाक, धीर-गंभीर विरोधी किरदारों में खूब जमे हैं। यहां भी उनका ‘कैल्म मेनेस’ ट्रेलर को वजन देता है। हरनाज़ संधू का हिंदी सिनेमा में ये बड़ा कदम माना जा रहा है—ट्रेलर के फ्रेम्स दिखाते हैं कि उनका पार्ट सिर्फ प्रेम-रुचि नहीं, कहानी का रहस्य-लोक है। सोनम बाजवा की मौजूदगी बहु-शैली दर्शकों को खींच सकती है—पंजाबी बेल्ट में उनकी फैन फॉलोइंग मजबूत है और हालिया बॉलीवुड प्रोजेक्ट्स ने उन्हें पैन-इंडिया रिकॉल दिया है।
रिलीज स्लॉट 5 सितंबर 2025 का है—ट्रेलर से मात्र एक हफ्ते बाद। यह ‘हॉट अटैक’ मॉडल ओपनिंग वीकेंड की ऊर्जा पकड़ने पर भरोसा करता है। एडवांस बुकिंग की टाइमिंग, शो काउंट और सिंगल-स्क्रीन पेनिट्रेशन तय करेंगे कि फिल्म शुरुआती तीन दिन में कितना बड़ा धमाका कर पाती है। ट्रेड हलकों में इसे बॉक्स ऑफिस कंटेंडर माना जा रहा है, खासकर एक्शन-हंग्री दर्शकों के लिए।
सवाल कुछ और भी हैं—कितना गोर थिएट्रिकल कट में बरकरार रहेगा? क्या कहानी का मनोवैज्ञानिक ट्रैक एक्शन के वजन के बराबर दमदार निकलेगा? और क्या फिल्म टाइगर के स्टार पावर को एक नई, ज्यादा अंधेरी दिशा दे पाएगी? जवाब थिएटर में मिलेंगे, लेकिन ट्रेलर ने जिज्ञासा और चर्चा—दोनों पैदा कर दी हैं।
ट्रेलर ने साफ कर दिया—यह सिर्फ अगला पार्ट नहीं, फ्रैंचाइज़ की भाषा बदलने की कोशिश है। अब गेंद ऑडियंस के पाले में है।
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