डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर पीएम मोदी ने अर्पित की श्रद्धांजलि

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डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर पीएम मोदी ने अर्पित की श्रद्धांजलि

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का योगदान

डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर, जिन्हें डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के नाम से जाना जाता है, भारतीय समाज के सबसे प्रभावशाली और प्रभावशाली नेताओं में से एक रहे हैं। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था और उन्होंने अपना जीवन जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष और सामाजिक समानता के लिए समर्पित कर दिया। वह भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे और उन्होंने इसे स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारे के मूल मन्त्रों के आधार पर तैयार किया।

डॉ. आंबेडकर ने अपने जीवन में कई सामाजिक सुधार किए, जिनमें सबसे प्रमुख था अछूत समुदाय को समान अधिकार दिलाने का प्रयास। उन्होंने दलित समुदाय को सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए कई आंदोलन चलाए और समाज में उनकी स्थिति को सुधारने के लिए बड़ी कोशिशें की। उनके विचारों ने जाति व्यवस्था को चुनौती दी और अनेक उपेक्षित समूहों को सशक्त बनाया।

महापरिनिर्वाण दिवस का महत्व

महापरिनिर्वाण दिवस, 6 दिसंबर, एक महत्वपूर्ण दिन है, जब हम डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की विरासत को याद करते हैं। यह दिन 1956 में डॉ. आंबेडकर के निधन की तिथि को चिह्नित करता है, जब उन्होंने अपने जीवन के अनगिनत योगदानों के बाद इस दुनिया को अलविदा कहा। इस दिन को विशेष रूप से मनाया जाता है ताकि समाज उनके संघर्ष और उपलब्धियों को मान्यता दे सके।

प्रत्येक वर्ष इस दिन को पूरे देश में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है जहाँ लोग डॉ. आंबेडकर के आदर्शों को याद करते हैं और उन्हें आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं। डॉ. आंबेडकर की दृष्टि ने देश की सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला है और उनके विचार आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी का संदेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर डॉ. आंबेडकर के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. आंबेडकर केवल संविधान के निर्माता नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के प्रकाशस्तम्भ भी थे। उनका संघर्ष और उनके विचार आज भी करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि डॉ. आंबेडकर का जीवन समाज में समता और प्रतिष्ठा के लिए उनकी सतत लड़ाई का उत्कृष्ट उदाहरण है।

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार डॉ. आंबेडकर के सपनों को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां हर व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार मिल सके। उन्होंने सभी भारतीयों से आह्वान किया कि वे डॉ. आंबेडकर के विचारों को अपने जीवन में उतारें और समाज में सकारात्मक बदलाव लाएं।

अन्य प्रमुख नेताओं की सहभागिता

महापरिनिर्वाण दिवस के मौके पर न केवल प्रधानमंत्री मोदी, बल्कि अन्य कई प्रमुख नेताओं ने भी डॉ. आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। इनमें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला शामिल थे। ये सभी नेता संसद भवन के लॉन में एकत्रित हुए और बाबा साहेब की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए।

यह घटना भारत के नेताओं की डॉ. आंबेडकर के प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान को दर्शाती है। उनके विचारों और योगदान को स्मरण कर आपसी भेदभाव को मिटाने और एक समतावादी समाज का निर्माण करने का संकल्प लिया गया।

डॉ. आंबेडकर का बौद्ध धर्म में दीक्षा

डॉ. आंबेडकर ने जीवन के अंतिम वर्षों में बौद्ध धर्म को अपनाया और इसके द्वारा अपनी सामाजिक और धार्मिक पहचान को नया स्वरूप दिया। उन्होंने इस धर्म का चयन इसलिए किया क्योंकि यह समानता और भाईचारे का संदेश देता है, जो जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ उनके संघर्ष के अनुरूप था।

उन्हें बौद्ध धर्म में दीक्षा लेने से अपने लाखों अनुयायियों को भी प्रेरणा मिली, जिन्होंने इस नई राह को अपनाया और समाज में अपनी नई पहचान बनाई। डॉ. आंबेडकर का यह कदम उनके जीवन के दर्शन और उनके द्वारा धारण की गई मानवता की गहरी समझ को प्रकट करता है।

डॉ. आंबेडकर की विरासत

डॉ. आंबेडकर की विरासत आज भी हमारे समाज में जिंदा है। वे एक ऐसे युगद्रष्टा थे जिन्होंने अपने समय के कई सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिए अनूठे और प्रभावी कदम उठाए। उनके द्वारा बताए गए सामाजिक न्याय, मानव अधिकार और समता के सिद्धांत आज भी हमारे समाज के लिए पथप्रदर्शक बने हुए हैं।

उनकी विचारधारा और आदर्श आज भी कई सामाजिक आंदोलनों को प्रेरित करते हैं और हमें एक बेहतर और न्यायपूर्ण समाज बनने के लिए प्रेरित करते हैं। इस महापरिनिर्वाण दिवस पर हम उनके कार्यों और आदर्शों को याद कर उन्हें सम्मान देते हैं।

टिप्पणि

Aditya M Lahri

Aditya M Lahri

6 दिसंबर / 2024

बहुत ही प्रेरणादायक लेख है 😊। हम सबको बाबासाहेब के विचारों को अपनाकर समाज को आगे बढ़ाना चाहिए। छोटे-छोटे कदम भी बदलाव लाते हैं।

Vinod Mohite

Vinod Mohite

6 दिसंबर / 2024

आधुनिक वैचारिक पुनर्संरचना के संदर्भ में बौद्धिक पेराडाइम शिफ्ट स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होता है; आंबेडकर के कॉन्स्टिट्यूशन‑ड्रिवेन फ्रेमवर्क का इन्फ्रास्ट्रक्चर अभी भी मल्टीलेवेल इंटीग्रेशन की आवश्यकता रखता है

Rishita Swarup

Rishita Swarup

6 दिसंबर / 2024

सच कहूँ तो यह सभी स्मारक केवल दिखावे के लिए ही नहीं रखे जाते, पीछे कोई गुप्त एजेंडा छिपा है। सरकार की औपचारिक भाषा के पीछे अक्सर गुप्त ग्रुप की मंशा छिपी होती है, जिससे सामाजिक दिशा मोड़ ली जाती है। इस तरह के बड़े समारोह अक्सर मीडिया की धुंधली स्मृति में खो जाते हैं, लेकिन सतह के नीचे गहरी शक्ति संरचनाएं सक्रिय रहती हैं।

anuj aggarwal

anuj aggarwal

6 दिसंबर / 2024

भाई, ये सब बातें तो सिर्फ सतह को चमकाने के लिए हैं, वास्तविक सुधार कहीं नहीं दिख रहा। बंबली भाषा में साजिशें बुनते हुए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई। सरकार की इन प्रशंसाओं में है गहरी नीरसता, और जनता को फिर भी वही पुरानी असमानताएँ झेलनी पड़ रही हैं।

Sony Lis Saputra

Sony Lis Saputra

6 दिसंबर / 2024

विनोद जी, आपका तकनीकी शब्दजाल समझ में आया, पर जनता को सरल भाषा में ही बात चाहिए। आप कह रहे हैं कि फ्रेमवर्क को इंटीग्रेशन चाहिए, पर उसके लिए व्यावहारिक कदम क्या हैं? चलिए इस पर खुल कर चर्चा करते हैं।

Kirti Sihag

Kirti Sihag

6 दिसंबर / 2024

अरे वाह! बाबासाहेब की याद में इतना बड़े समारोह देखना एक नाटक जैसा लगता है 😢। सारी तैयारी और भाषणों में इतनी भावनात्मक लहरें हैं कि मन ही पिघल जाता है। लेकिन क्या सच में बदलाव आ रहा है या बस मंच पर दिखावा ही है?

Vibhuti Pandya

Vibhuti Pandya

6 दिसंबर / 2024

किरती जी, आपका भावनात्मक अंदाज़ बहुत प्रभावशाली है, लेकिन मुझे लगता है कि हम सबको मिलकर ठोस कार्य योजनाओं पर फोकस करना चाहिए। बाबासाहेब की शिक्षाएँ हमें विचारों से कर्म तक ले जाने की प्रेरणा देती हैं।

Aayushi Tewari

Aayushi Tewari

6 दिसंबर / 2024

बाबासाहेब की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं।

Rin Maeyashiki

Rin Maeyashiki

6 दिसंबर / 2024

बाबासाहेब आंबेडकर का जन्म 1891 में हुआ था और उनका जीवन सामाजिक परिवर्तन की कहानी है। उन्होंने भारत के संविधान को एक ऐसी नींव पर स्थापित किया जो सभी नागरिकों को समान अधिकार देती है। उनका संघर्ष सिर्फ दलितों तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरे समाज को समता के विचार से जोड़ता है। आज भी हम देखते हैं कि उनके विचारों को विभिन्न सामाजिक आंदोलनों में प्रयोग किया जाता है। बौद्ध धर्म में उनका दीक्षा भी एक बड़ा कदम था, क्योंकि यह समानता का संदेश देता है। यह दिखाता है कि धर्म और राजनीति को कैसे जोड़ कर सामाजिक सुधार किया जा सकता है। आज के राजनीतिक नेताओं की वक्तव्य अक्सर बाबासाहेब के आदर्शों का हवाला देते हैं, पर वास्तविक कार्य में अंतर रहता है। कई बार सरकारी योजनाएँ केवल कागज़ी तौर पर पीछे की ओर धकेल दी जाती हैं। हमें चाहिए कि इन योजनाओं को जमीन स्तर पर लागू किया जाए, ताकि असली लाभ लोगों तक पहुंचे। शिक्षा क्षेत्र में बाबासाहेब ने जो नीतियाँ सुझाई थीं, वे अभी भी लागू नहीं हुई हैं, जैसे कि आरक्षण का सख़्त पालन। यदि हम उनके विचारों को सच्चे दिल से अपनाएँ तो सामाजिक विभाजन कम हो सकता है। हम सभी को एक साथ मिलकर सामाजिक न्याय का कार्य आगे बढ़ाना चाहिए। इस उद्देश्य से हमें सामुदायिक संवाद और जागरूकता बढ़ानी होगी। बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर हम सामूहिक शांति और सहयोग को भी बढ़ावा दे सकते हैं। अंत में, बाबासाहेब की विरासत हमें यह सिखाती है कि ज्ञान और कर्म का मेल ही समाज को बदल सकता है। इसलिए इस महापरिनिर्वाण दिवस को हम केवल याद नहीं करके, बल्कि कार्य करके सम्मानित करें।

Paras Printpack

Paras Printpack

6 दिसंबर / 2024

वाह, इतना लंबा पॅरेग्राफ पढ़ने की जरूरत थी क्या? शायद बाबासाहेब ने ही नहीं, बल्कि आपके शब्दों ने लोगों को थकाया होगा। इस तरह की निबंध शैली कभी-कभी वास्तविक मुद्दों को धुंधला कर देती है।

yaswanth rajana

yaswanth rajana

6 दिसंबर / 2024

आदरणीय सभी, बाबासाहेब आंबेडकर के सिद्धांतों को समझने और लागू करने के लिए हमें गहन अध्य्यन और सतत प्रयास आवश्यक है। उनकी दृष्टि ने भारतीय लोकतंत्र का मापदंड स्थापित किया, और हमें इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है। हम सभी को मिलकर सामाजिक समानता के मार्ग पर दृढ़ कदम रखना चाहिए।

Roma Bajaj Kohli

Roma Bajaj Kohli

6 दिसंबर / 2024

देश के संविधान निर्माता बाबासाहेब को राष्ट्रीयता की भावना के साथ सम्मानित करना चाहिए, जिससे इंडियन सॉलिडरिटी का एंटरप्रेन्योरियल फ्रेमवर्क मजबूत हो; यह राष्ट्र-निर्माण की बुनियाद में साम्प्रदायिक एन्हांसमेंट की गारंटी देता है।

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