हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और जमानत
झारखंड के मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी ने राज्य की राजनीति में एक भूचाल ला दिया था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 31 जनवरी को सोरेन को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया, जिसका संबंध राज्य की राजधानी में एक कथित भू-घोटाले से था। इस गिरफ्तारी के बाद सोरेन की अनुपस्थिति में सत्ता का बागडोर उनके करीबी सहयोगी और मंत्री, चंपाई सोरेन ने संभाली।
ईडी का दावा और हाई कोर्ट का फैसला
ईडी का दावा था कि उनके समय पर किए गए हस्तक्षेप ने सोरेन और अन्य लोगों को अवैध तरीके से जमीन हासिल करने से रोका। हालांकि, झारखंड हाई कोर्ट ने इस दावे पर संदेह जताया। कोर्ट ने पाया कि गवाहों की गवाही के अनुसार, सोरेन 2010 से ही विवादित जमीन पर कब्जा रखते थे। अधिकतर रिकॉर्ड और राजस्व दस्तावेजों में सोरेन की सीधी भूमिका का कोई प्रमाण नहीं था। इस आधार पर, हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी और 4 जुलाई को हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने पद को पुनः संभाला।

चुनावी सफलता और राजनीतिक परिदृश्य
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और उन्होंने जमानत पाने तक की अवधि में, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) को चुनावों में अप्रत्याशित सफलता मिली। जेएमएम ने तीन लोकसभा सीटें जीतीं, जो 2019 में केवल एक सीट के मुकाबले एक उल्लेखनीय वृद्धि थी। कांग्रेस, जो जेएमएम की सहयोगी पार्टी है, ने भी दो सीटें जीतीं। इस चुनावी सफलता ने साबित किया कि जेएमएम की राजनीति और नेतृत्व में सोरेन की अनुपस्थिति के बावजूद भी उनकी पकड़ बनी रही।
ईडी का सुप्रीम कोर्ट में अपील
ईडी ने झारखंड हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, यह दावा करते हुए कि जमानत आदेश अवैध और पक्षपाती है। ईडी का यह अनुरोध है कि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करे और सोरेन के खिलाफ आरोपों की निष्पक्ष जांच की जाए।

झारखंड की राजनीतिक अस्थिरता
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और उस पर लगे आरोपों ने राज्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मामले का नतीजा राज्य की राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है। क्या राज्य की जनता पर इस घटनाक्रम का कोई दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, यह अभी देखना बाकी है।
यह घटनाक्रम झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, खासकर जब राज्य की जनता और राजनीतिक पर्यवेक्षक यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि सुप्रीम कोर्ट का क्या निर्णय होगा। ईडी के मांग पर अदालत का अंतिम फैसला आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीतिक दिशा को तय करेगा।
Rin Maeyashiki
9 जुलाई / 2024सोरेन की जमानत मुद्दा झारखंड की राजनीति में नया मोड़ लाया है। ईडी के इस दावे को देख कर ऐसा लगता है जैसे हाथी को सूँघने के लिए बंदर को भेज दिया हो। हाई कोर्ट ने जहाँ जमानत दी, वहीं से राजनीतिक दलों ने ताली बजाना शुरू कर दी। इस जमानत से जेएमएम की नींव पर एक अतिरिक्त पट्टिका जुड़ गई। जनता ने भी इस खबर को टॉपिक बनाकर हर चैट में शेयर किया है। अभी तो ऐसा है जैसे सड़कों पर हर गली में चर्चा चल रही है कि अब सरकार कैसे काम करेगी। सोरेन के बिना भी जेएमएम ने चुनावों में जीत हासिल की, वो भी बिना किसी बड़े नेता के। इस बात से स्पष्ट है कि कड़ी मेहनत और रणनीति ने इस सफलता को संभव बनाया। लेकिन ईडी का रिसर्ज़न अभी भी जारी है और सुप्रीम कोर्ट में अपील का मसला बना रहेगा। इस प्रक्रिया में न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी सवाल उठता है। यदि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में शक्ति की सीमाएँ समझ आ जाएँ, तो भविष्य में ऐसे ही केस के लिए एक मिसाल स्थापित हो सकती है। साथ ही, यह भी जरूरी है कि जमीन विवादों में पारदर्शिता बनी रहे, ताकि लोकल विधायक और जनता दोनों को विश्वास हो। इस जमानत से राजनीतिक स्थिरता को थोड़ा राहत मिली है, लेकिन पूरी तरह से सुकून नहीं आया। राज्य में निवेशकों को अब भी सतर्क रहना पड़ेगा, क्योंकि कानूनी अस्पष्टता हमेशा जोखिम पैदा करती है। अन्त में, हमें देखना होगा कि यह जमानत किस हद तक राजनीतिक गणित को बदलती है और क्या यह झारखंड की विकास यात्रा में सकारात्मक प्रभाव डालेगी।